अगले वित्तीय वर्ष से उच्च-आय वाले नौकरी-पेशा वाले लोगों को भविष्य निधि (PF), सुपरनेशन फंड और नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में उनके अंशदान पर आय कर देना होगा। साल 2020-21 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने इसका ऐलान किया। उन्होंने इन तीनों श्रेणियों के लिए नियोक्ता के योगदान की अधिकतम सीमा संयुक्त रूप से 7.5 लाख रुपये का प्रस्ताव किया है। इससे अधिक की राशि को कर्मचारियों पर कर योग्य दायरे में रखा गया है।
बजट दस्तावेजों में सरकार ने तर्क दिया कि उच्च वेतन वाले लोग अपने वेतन पैकेज को इस तरह से डिजाइन करने में सक्षम होते हैं जहां उनके वेतन का एक बड़ा हिस्सा नियोक्ता द्वारा इन तीनों फंडों में भुगतान किया जाता है, जबकि कम वेतन वाला कर्मचारी सक्षम इस तरह नहीं होता है। बता दें कि नियोक्ता कर्मचारी के वेतन का एक बड़ा हिस्सा इन तीनों फंडों में भुगतान करता है।
बजट में कहा गया है, “वेतन के इस हिस्से को किसी भी समय कराधान का नुकसान नहीं होता है, क्योंकि इन तीन निधियों के लिए छूट-छूट-छूट (ईईई) शासन का पालन किया जाता है। इस प्रकार, संयुक्त रूप से ऊपरी सीमा न होना अधर्म है, इसलिए वांछनीय नहीं है। इसलिए, एनपीएस, सुपरनेशन फंड और मान्यता प्राप्त भविष्य निधि में नियोक्ता के योगदान के संबंध में सात लाख पचास हजार रुपये की संयुक्त ऊपरी सीमा प्रदान करना प्रस्तावित है और किसी भी अतिरिक्त योगदान को भी कर योग्य बनाने का प्रस्ताव है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि वित्त मंत्री का यह कदम कराधान के नजरिए से कोई मतलब नहीं रखता है क्योंकि कंपनियां कॉस्ट-टू-कंपनी (सीटीसी) के रूप में पैकेज देती हैं। हालांकि, इस कदम से छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों को कम आय वाले कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि कवरेज की पेशकश करने के लिए परेशान होना पड़ सकता है।
वर्तमान व्यवस्था में नियोक्ता द्वारा दिए गए योगदान की राशि पर कटौती के लिए कोई संयुक्त ऊपरी सीमा नहीं है लेकिन नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों के वेतन का 12 प्रतिशत या उस से अधिक की भविष्य निधि कटौती पर कर लगता है। इसके अलावा, नियोक्ता द्वारा स्वीकृत सुपरनेशन फंड में 1.5 लाख रुपये से अधिक के किसी भी योगदान को कर्मचारी के वेतन एवं भत्ते का हिस्सा माना जाता है।