नयी दिल्ली: ग्रामीण भारत का विकास करने के इरादे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज महत्वाकांक्षी ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ का शुभारंभ किया और हर सांसद से 2016 तक एक गांव तथा 2019 तक तीन गांवों को विकसित करने का आग्रह किया।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर इस योजना का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि इससे अच्छी राजनीति के द्वार खुलेंगे।
उन्होंने कहा कि सांसद आदर्श ग्राम योजना की तीन अनूठी विशेषताएं होनी चाहिएंं यानी यह मांग पर आधारित हो, समाज द्वारा प्रेरित हो और इसमें जनता की भागीदारी हो। उन्होंने कहा कि लोेकतंत्र और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता है लेकिन बुरी राजनीति से अक्सर नुकसान होता है।
यह योजना अच्छी राजनीति की ओर बढ़ने की प्रेरणा देगी और सांसद मददगार और उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाएंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से अब तक सभी सरकारों ने ग्रामीण विकास के लिए काम किए हैं। इन प्रयासों में समय के साथ संशोधन किया जाना चाहिए ताकि विश्व में आ रहे परिवर्तनों के अनुरूप आगे बढ़ा जा सके।
उन्होंने कहा कि सांसद आदर्श ग्राम योजना सांसदों के नेतृत्व में काम करेगी जिसमें 2016 तक प्रत्येक सांसद एक-एक गांव को विकसित बनाएंगे और बाद में 2019 तक दो-दो और गांवों का विकास करेंगे।
इस योजना के तहत सांसद अपने क्षेत्र में कोई भी गांव चुनने के लिए स्वतंत्र होंगे मगर वे अपना गांव या अपने ससुराल के गांव का चयन नहीं कर सकेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हम लगभग 800 सांसद हैं। अगर हममें से प्रत्येक 2019 से पहले तीन गांव का विकास करता है, हम तकरीबन 2500 गांव तक ऐसा कर सकेंगे।
अगर इस योजना की रोशनी में राज्य भी अपने विधायकों के लिए ऐसी योजना बनाते हैं तो इसमें छह से सात हजार गांव और जुड़ सकते हैं।’’
उनके अनुसार अगर एक ब्लाक में एक गांव विकसित होता है तो इसका असर ‘वाइरल’ की तरह फैलेगा और विकास की ललक अन्य गांवों को भी आकर्षित करेगी।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मुझे भी वाराणसी में एक गांव चुनना है।’’ उन्होंने कहा कि इस संबंध में वह वहां जाकर चर्चा करेंगे और गांव को चुनेंगे।
उन्होंने कहा, इस योजना के जरिए ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए जिससे कि हर व्यक्ति अपने गांव के लिए गर्व महसूस करे।
इस अवसर पर विकास के तरीकों को लेकर चल रही बहस पर उन्होंने कहा, ‘‘लंबे समय से एक बहस जारी है। बहस यह है कि विकास उच्च्पर से नीचे की ओर होना चाहिए या नीचे से उच्च्पर की ओर।
बहस से फायदा होता है। लेकिन जो लोग काम में लगे हैं, उन्हें कहीं से तो शुरू करना होगा…नीचे से उच्च्पर या उच्च्पर से नीचे विकास शुरू करने की बहस अकादमिक जगत में चलती रहेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम काम करना चाहते हैं। हम देखना चाहते हैं कि क्या सार्वजनिक भागीदारी से हम बदलाव ला सकते हैं…मैं यह दावा नहीं कर रहा हूं कि मैं अचानक स्थिति बदल दूंगा…यह योजना अंतिम नहीं है। समय के साथ इसमें परिवर्तन और सुधार आएंगे।’’