नारदा मामले में सॉलिसिटर जनरल ने फिर से हाईकोर्ट में दलील दी कि 17 मई को सीबीआई कोर्ट को दबाव में लेने की कोशिश की गई थी तो पांच जजों की बेंच ने उनसे सवाल किया कि मामले की सुनवाई वर्चुअल थी। जज को पता ही नहीं था कि सीबीआई कोर्ट के बाहर लोगों की भीड़ भी जमा है तो वो दबाव में कैसे आ सकते थे?
जस्टिस आईपी मुखर्जी ने कहा कि संविधान के तहत भी ये आजादी लोगों को दी गई है कि शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन के जरिए वो अपनी बात रख सकते हैं। लोगों को सरकार के फैसले पर सवाल उठाने का अधिकार है। ऐसे में आम आदमी ये बात कैसे मान सकता है कि इस तरह के विरोध से कोई भी कोर्ट प्रभावित हो सकती है। दरअसल, कोर्ट ने ये सवाल सॉलिसिटर जनरल की उस दलील पर किया जिसमें वो लगातार कह रहे थे कि कोर्ट दबाव में आई या नहीं ये महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि अहम ये बात है कि आम आदमी के मन में इस तरह के वाकये किस तरह का असर छोड़ सकते हैं। उसे तो ये ही लगेगा कि भी़ड़ ने हंगामा किया तो जज ने जमानत मंजूर कर ली।
नारदा स्टिंगः सैमुअल की 52 घंटे की फुटेज ने बंगाल में मचा दिया था हड़कंप
HC में उठा सवाल- मुकुल राय और सुवेंदु अधिकारी बीजेपी में चले गए, इसलिए पार्टी नहीं बनाया?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि ये जरूरी है जज निष्पक्ष रहे लेकिन ये बात दिखाई भी देनी चाहिए कि जज किसी दबाव में नहीं है। मेहता का कहना था कि देश के दूसरे राज्यों में बहुत से नेता अरेस्ट हुए हैं लेकिन इस तरह का वाकया कहीं देखने को नहीं मिला जब कोई राजनीतिक दल भीड़ के साथ जांच एजेंसी के दफ्तर पर ही हमला बोल दे। उनका तर्क था कि इस पर संज्ञान नहीं लिया गया तो देश के दूसरे हिस्सों में ये हरकत देखने को मिल सकती हैं।
मेहता ने 2018 की उस घटना का भी हवाला दिया जब ममता सरकार ने कोलकाता पुलिस कमिश्नर पर कार्रवाई करने के मामले में सीबीआई के अफसरों को डराने की कोशिश की थी। उनका कहना था कि बंगाल में ये प्रैक्टिस आम हो चली है। ममता के किसी नजदीकी पर एक्शन लो तो तुरंत एक सरकारी भीड़ हंगामा करने लग जाती है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में दो सवाल खड़े होते हैं। पहला ये कि जांच एजेंसी के तौर पर क्या उन्हें लगता है कि सुनवाई निष्पक्ष हुई। दूसरा सवाल ये है कि आम आदमी को ये तो नहीं लग रहा कि न्याय अधूरा रह गया। उनकी दलीलों पर बेंच ने सवाल किया कि इन सबके लिए आरोपियों को मरने के लिए क्यों छोड़ देना चाहिए? कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर आपको लगता है कि कोर्ट पर दबाव था तो आपके वकील ने सुनवाई को रोकने के लिए उस समय क्यों नहीं कहा था।
मेहता का कहना था कि ये सब पूर्व नियोजित था। आरोपियों को इस हंगामे से फायदा मिला और वो रिहा हो गए। जब उन्हें बेल मिली तो भीड़ भी मौके से गायब हो गई। गौरतलब है कि ममता सरकार के मंत्रियों समेत चार नेताओं को गिरफ्तार करने के मामले में 17 मई को सीबीईआई कोर्ट ने जमानत मंजूर की थी। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद कर दिया था लेकिन बाद में जमानत दे दी।