गंगा सफाई के लिए बनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ (नेशनल गंगा काउंसिल या एनजीसी) की आज तक एक भी बैठक नहीं हुई है। तीन साल पहले पीएम मोदी की अध्यक्षता में गठित की गई राष्ट्रीय गंगा परिषद की पहली बैठाक शनिवार को होने जा रही है। अक्टूबर 2016 में राष्ट्रीय गंगा परिषद का गठन किया था। इसका उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण, सुरक्षा और प्रबंधन करना है।
जल शक्ति मंत्रालय ने एक अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि परिषद में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे 5 राज्यों के मुख्यमंत्री, – उत्तर प्रदेश, नौ केंद्रीय मंत्री, और NITI Aayog उपाध्यक्ष शामिल हैं। ये सभी शनिवार को कानपुर में मिलेंगे।
सूत्रों के अनुसार, परिषद 14-बिंदु एजेंडे पर विचार-विमर्श करेगी। यह 2020 से परे नमामि गंगे कार्यक्रम को जारी रखने के लिए प्रमुख स्वीकृति दे सकता है। यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, आयुष मंत्रालय और गंगा बेसिन राज्यों को दोनों ओर 5 किमी में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए निर्देशित कर सकता है।
भारत सरकार ने गंगा नदी के संरक्षण के लिए मई 2015 में नमामी गंगे कार्यक्रम को मंज़ूरी दी थी। इसके तहत गंगा नदी की सफाई के लिए दिशानिर्देश बनाए गए थे। जैसे- नगरों से निकलने वाले सीवेज का ट्रीटमेंट, औद्योगिक प्रदूषण का उपचार, नदी के सतह की सफाई, ग्रामीण स्वच्छता, रिवरफ्रंट विकास, घाटों और श्मशान घाट का निर्माण, पेड़ लगाना और जैव विविधता संरक्षण इत्यादि शामिल हैं।
बता दें कि 2016 में राष्ट्रीय गंगा परिषद के गठन के साथ ही राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का विघटन कर दिया गया था। एनजीआरबीए की कार्यप्रणाली लगभग राष्ट्रीय गंगा परिषद की ही तरह थी. इस समिति के भी अध्यक्ष प्रधानमंत्री हुआ करते थे।
राष्ट्रीय गंगा परिषद में प्रधानमंत्री के अलावा जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उपाध्यक्ष के पद पर होते हैं। इसके अलावा पांच राज्यों- बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री समेत केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, वित्त मंत्री, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री, नीति आयोग के उपाध्यक्ष आदि इसके सदस्य होते हैं।