कई इतिहासकारों और किवदंतियों के मुताबिक कर्नाटक का मैसूरु शहर का नाम महिषासुर के नाम पर पड़ा। स्थानीय कथाओं के अनुसार राक्षस महिषासुर के नाम पर इस जगह का नाम मैसूरु हुआ। महिषासुर को चामुंडेश्वरी देवी ने मारा था। मैसूरु नाम का मतलब महिषासुर की धरती भी होता है। यहां पर केवल एक पहाड़ी का नाम ही चामुंडेश्वरी देवी के नाम पर है। यहां के लोगों को भी महिषासुर के नाम पर शहर का नाम होने से कोई परेशानी नहीं है। मैसूरु की चामुंडेश्वरी पहाड़ी पर महिषासुर की मूर्ति भी लगी हुई है।
मैसूर यूनिवर्सिटी के एनशियंट हिस्ट्री और आर्कियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर एवी नरसिम्हा मूर्ति बताते हैं,’मैसूरु का नाम महिषासुर की कथा से आया है। ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि महिषासुर को अच्छे राक्षस के रूप में देखा गया। पुराणों में अच्छे और बुरे राक्षस हुए हैं और महिषासुर काे अच्छा राक्षस माना गया। अशोक के समय मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि उस समय बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए महिषा मंडल था। महिषासुर की कहानी उसके बाद आती है लेकिन मैसूर का नाम वहीं से लिया गया।’
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एक अन्य इतिहासकार बी शेख अली भी ऐसा ही मानते हैं। उनका कहना है कि मैसूर का नाम चामुंडेश्वरी और महिषासुर की कहानी पर ही रखा गया है। वे कहते हैं, ‘पौराणिक कथाओं के अनुसार चामुंडेश्वरी ने महिषासुर का संहार किया। मैसूर का नाम महिषासुर से ही आया है। यह पौराणिक कथा पर आधारित है न कि ऐतिहासिक चरित्र पर।’ शेख के अनुसार टीपू सुल्तान मैसूर का नाम मंजराबाद रखना चाहते थे लेकिन अंग्रेजों से हार के चलते ऐसा नहीं हो पाया। बाद के राजाओं ने मैसूर नाम को ही अपनाया।
मैसूर यूनिवर्सिटी के पूर्व इतिहासकार पीवी नंजराज उर्स बताते हैं, ‘यह जगह पहले येम्मे नाडु या भैेंसों की धरती के नाम से जानी जाती थी। बाद में यह महिषा नाडु हो गई। मेरा मानना है कि इसके चलते ही यहां का नाम मैसूर हो गया।’ वहीं देवी पुराण की कथा के अनुसार इस जगह पर महिषासुर के नाम के राक्षस का शासन था। देवी देवताओं की प्रार्थना के बाद पार्वती ने चामुंडेश्वरी के रूप में जन्म लिया और महिषासुर का वध किया।
यह भी एक तथ्य ही है कि देश भर की आदिवासी प्रजातियां महिषासुर को मानती हैं। लातेहार नेतारहाट के सखुयापानी गांव की रहने वाली सुषमा असुर ने कहा, ”हम सभी एक ही धरती मां के गर्भ से पैदा हुए हैं। लड़ाई खत्म होने वाली नहीं है। लेकिन हम मानते हैं कि महिषासुर हमारे राजा थे और दुर्गा ने गलत तरीके से उनकी हत्या कर दी। पक्षपातपूर्ण तस्वीर क्यों पेश की जानी चाहिए। हमारे यहां महिषासुर की मूर्ति नहीं है। हमें उन्हें दिल में रखते हैं। कई पीढि़यों से होकर हम तक पहुंचे रीति रिवाजों में हमें सही सिखाया गया है कि हमें उस रात हम एहतियात बरतें जब महिषासुर का वध हुआ था। हमारे समुदाय के लोग अपनी नाभि, कान, नाक और उन जगहों पर तेल लगाते हैं, जहां दुर्गा के त्रिशूल के वार से महिषासुर के शरीर से खून निकलते दिखाया गया है।”
सुषमा असुर समुदाय से हैं, जिसे आधिकारिक तौर पर प्रिमिटिव ट्राइब ग्रुप के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। इनकी झारखंड में तादाद 10 हजार से भी कम है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि राक्षसों के इस राजा की पूजा और उसकी मौत का शोक झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के आदिवासी समूहों में मनाया जाता है।