तीन साल पहले मुजफ्फरनगर दंगों में 12 साल के बच्चे और एक महिला की हत्या और उन्हें जलाने के आरोपी 10 लोगों को कोर्ट ने रिहा कर दिया है। दोनों मृतक दो अलग अलग परिवारों से ताल्लुक रखते थे। जिला और सेशन कोर्ट ने पिछले सप्ताह सबूतों के अभाव में इन लोगों को रिहा कर दिया था। सरकारी वकील ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि केस में 10 गवाहों में से 5 चश्मदीदों ने बयान बदल दिए। इससे मामला आरोपियों के पक्ष में हाे गया। अब पीडि़त परिवार केस आगे नहीं लड़ना चाहता है। दाेनों परिवार दंगों के दौरान शामली जिले के अलग अलग गांवों में चले गए। अब वे अपने पैतृक गांव भी नहीं लौटना चाहते।
घटना आठ सितम्बर 2013 की है। दंगे शुरु होने के कुछ ही देर बाद 43 साल के मोहम्मद इकबाल अपने पैतृक गांव लाक को छोड़कर परिवार के साथ बागपत चले गए। उनका 12 साल का बेटा आस और 70 साल की मां वहीं रह गए। इकबाल बताते हैं कि, ‘ मैं परिवार को बागपत में रिश्तेदार के यहां ले गया। शाम को मुझे स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि भीड़ ने मेरे बेटे को पहले गोली मार दी और फिर जला दिया। मेरी मां घायल हो गई थी। दूसरे दिन पुलिस ने मां को बागपत भेज दिया।’ इकबाल ने सरकार की ओर से मिली मदद से शामली जिले के कांधला गांव में मकान बना लिया है। उन्होंने बताया कि, सबूतों के अभाव में कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया। लेकिन वे आगे केस नहीं लड़ना चाहते। उन्होंने केस आगे न लड़ने के लिए कोई कारण नहीं बताया।
इकबाल के बेटे आस के अलावा उसके पड़ाेस में रहने वाली 30 साल की सराजो को भी मारकर जला दिया गया था। सराजो का पति वाहिद भी लाक नहीं लौटा और शामली में रह रहा है। इसी बीच जमियत ए उलेमा हिंद ने आरोपियाें के बरीे होने के लिए कमजोर पुलिस जांच काे जिम्मेदार ठहराया। संगठन ने सरकार से इस मामले में हाईकोर्ट में अपील करने की मांग की है। उन्होंने सरकारी वकील साजिद राणा को भी हटाने की मांग की है। अभियोजन पक्ष के अनुसार 100-150 लोगों की भीड़ ने इकबाल के घर पर हमला किया। उन्होंने इकबाल की मां के सिर पर वार किया। इसके बाद आस मोहम्मद को गोली मार दी। भीड़ बाद में सराजो के घर पहुंची और धारदार हथियार से उसकी हत्या कर दी। बाद में भीड़ ने दोनों के शव जला दिए। 22 सितम्बर 2013 को इकबाल ने 13 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। वहीं वाहिद ने आठ लोगों के खिलाफ शिकायत की थी।