देश भर के राज्यों की पुलिस में मुस्लिमों की भागीदारी को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है। इसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। गैरसरकारी संस्था कॉमन कॉज और लोकनीति-प्रोग्राम फॉर कॉम्पेरेटिव डेमोक्रेसी (सीएसडीएस) की साझा रिपोर्ट में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर नए तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट में पुलिस में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व बेहद कम, लेकिन जेल में बंद कैदियों के मामले में अनुपात बेहद ज्यादा पाया गया है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय में आतंकवाद से जुड़े मामलों में गलत तरीके से फंसाने की भावना भी व्यापक पैमाने पर पाई गई है। पुलिस में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व का अनुपात संबंधित राज्य में उनकी आबादी के लिहाज से निकाला गया है। रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2013 में ‘भारत में अपराध’ के अंतर्गत एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) पुलिस में मुस्लिमों के बारे में जानकारी देता था। इस प्रक्रिया को पांच साल पहले बंद कर दिया गया। इसके कारण पक्षपात की समस्या बढ़ने की भी बात कही गई है।

मुस्लिमों के अलावा दलित और आदिवासी कैदियों के बारे में भी जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में 22 राज्यों को शामिल किया गया है। इनमें से सिर्फ पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, पंजाब और कर्नाटक में ही आबादी के लिहाज से दलित कैदियों की तादाद उनकी आबादी के अनुपात में कम है। आदिवासियों के मामले में हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और नगालैंड की स्थिति ही बेहतर है। मुस्लिम कैदियों के मामले में यह स्थिति बिल्कुल उलट है। सर्वे में शामिल सभी 22 राज्यों में मुस्लिम कैदियों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में बहुत ज्यादा है। मालूम हो कि सच्चर समिति ने विभिन्न क्षेत्रों में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की वकालत की थी। समिति ने आबादी के हिसाब से मुस्लिमों की हिस्सेदारी को बेहद कम बताया था। साथ ही इसे दुरुस्त करने के तौर-तरीके भी सुझाए गए थे। सच्चर समिति की रिपोर्ट पर अमल करने की बात कही गई थी, लेकिन इस दिशा में ठोस पहल नहीं की जा सकी। ताजा रिपोर्ट में मुस्लिमों के साथ ही दलितों और आदिवासियों की स्थिति भी खराब बताई गई है। दलितों और आदिवासियों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।