बीस साल पहले कारगिल में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तब एक पब्लिक कॉल ऑफिस (पीसीओ) चलाने वाले मोहम्मद हसन ने सैनिकों और पत्रकारों के बीच और देश के बाकी हिस्सों में एक महत्वपूर्ण संचार लिंक बनाने वाले व्यक्ति के रूप में उभरे। युद्ध के वक्त जब मोबाइल फोन्स ने काम करना बंद कर दिया तब टाउन में एकमात्र हसन के पीसीओ ने सैनिकों के परिवारों तक संदेश पुहंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। युद्ध की लाइव रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों के लिए भी उनकी फीड भेजने का हसन एकमात्र विकल्प थे।
कारगिल युद्ध के वक्त करीब बीस वर्ष के हसन उन मुट्ठी भर लोगों में से एक थे जो जंग के वक्त वहीं रुके रहे। सालों पुरानी जंग को याद करते हुए हसन कहते हैं, पाकिस्तानी सीमा से लगे भारतीय क्षेत्र में गोले पहली बार साल 1997 से आना शुरू हुए और 1999 में पूरी तरह युद्ध छिड़ गया। 1995 में पीसीओ शुरू करने वाले हसन कहते हैं कि उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि आने वाले वर्षों में इसका कितना महत्व होगा।
हसन कहते हैं, ‘साल 1995 में बीएसएनएल के एक अधिकारी से मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने मुझे नई टेलीफोन सुविधा के लिए एक फॉर्म भरने का सुझाव दिया। कुछ दिन बाद मैंने अपना पीसीओ शुरू कर लिया।’ हसन आगे कहते हैं, ‘कारगिल युद्ध के दौरान सैनिकों ने रात-दिन अपने परिवारों वालों के फोन करने के लिए पीसीओ का इस्तेमाल किया। जो पत्रकार युद्ध की रिपोर्टिंग कर रहे थे उन्होंने भी मेरे पीसीओ की फैक्स मशीन के जरिए फीड भेजी।’ चालीस वर्षीय हसन अब दो बच्चों के पिता भी हैं।
हसन कहते हैं कि पीसीओ केवल सैनिकों, पत्रकारों और उनकी की यादों में रह गया। आज सबकुछ बदल चुका है। सबके पास मोबाइल है। मैंने 2008 में अपना पीसीओ बंद कर दिया। कारगिल के दौरान जिस स्थान में हसन का पीसीओ था वहां इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर के पहुंचने पर मालूम चला कि वहां पीसीओ की जगह वर्तमान में ऊंची इमारत खड़ी है और मुश्किलों से कम लोगों को उस पीसीओ के बारे में मालूम है।
