मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई हिंसा अभी भी जारी है। जहां सरकार वार्ता के ज़रिए हल करने का प्रयास कर रही है वहीं हालात अभी बेहतर होते नज़र नहीं आ रहे हैं। प्रदेश के हालात पर चर्चा के लिए 24 जून को गृहमंत्री अमित शाह ने ऑल मीटिंग की थी वहीं कांग्रेस लगातार इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है।
ताज़ा खबर के मुताबिक सुरक्षा बलों ने हिंसा पर काबू पाने के लिए अपना अभियान और तेज़ कर दिया है। पिछले 24 घंटों में सुरक्षा बल उग्रवादियों के 12 से ज़्यादा बंकर नष्ट कर चुके हैं। मणिपुर पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों को साथ लेकर तमेंगलोंग, इंफाल पूर्व, बिष्णुपुर, कांगपोकपी, चुराचांदपुर और काकचिंग जिलों में सर्च ऑपरेशन चलाया गया है जहां यह कार्रवाई की गई है। पुलिस ने बताया कि 51 मिमी मोर्टार गोले, तीन 84 मिमी मोर्टार और आईईडी पाए गए हैं, बम निरोधक टीम ने IED को भी नष्ट कर दिया है।
कैसे हैं हालात?
मणिपुर पुलिस के मुताबिक कुछ जिलों को छोड़कर ज़्यादातर जगह अब शांति है। कुछ-कुछ हिस्सों से हिंसा की खबरें आई हैं। पुलिस ने अलग-अलग मामलों में 150 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। सुरक्षा बल हालात को बेहतर बनाए रखने के लिए लगातार फ्लेग मार्च कर रहे हैं। पुलिस ने कहा कि आम लोगों हालात को बेहतर बनाने में हमारा सहयोग करें और हिंसा को लेकर जानकारी साझा करते रहें।
क्या है हिंसा की वजह?
3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने मार्च का ऐलान किया था। यह मार्च मैतेई समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने की लंबे समय से चली आ रही मांग के विरोध में था। जिसे पिछले महीने मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश से बढ़ावा मिला था।
मणिपुर उच्च न्यायालय एकल न्यायाधीश द्वारा पारित मांग और आदेश दोनों का राज्य के आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों द्वारा कड़ा विरोध किया गया है। 14 अप्रैल को जारी अदालत के आदेश में सरकार से मांग पर विचार करने को कहा गया है। इसके बाद कई आदिवासी समूह इसके खिलाफ आ खड़े हुए हैं।
2012 से इस मांग के समर्थन में एक संगठित प्रयास किया गया है। मणिपुर उच्च न्यायालय के समक्ष हालिया याचिका मीतेई (मीतेई) जनजाति संघ द्वारा दायर की गई थी, जिसमें मणिपुर सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मीतेई/मीतेई समुदाय को शामिल करने के लिए एक सिफारिश पेश करे।
मीतेई (मीतेई) जनजाति संघ द्वारा दलील दी गयी है कि 1949 में भारत संघ के साथ मणिपुर की रियासत के विलय से पहले मेइती समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी और विलय के बाद एक जनजाति के रूप में इसकी पहचान खो गई है। अदालत में यह तर्क दिया गया कि एसटी दर्जे की मांग समुदाय को “संरक्षित” करने की आवश्यकता से पैदा हुई है। इस समुदाय की भाषा और पहचान को बचाने में इससे मदद मिलेगी।