मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा देने वाले आदेश को हाई कोर्ट ने पलट दिया है। हाई कोर्ट का मानना है कि उस आदेश की वजह से राज्य में अशांति पैदा हुई थी। पिछले साल मार्च में ही हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा देने पर विचार करना चाहिए। उस एक आदेश की वजह से हिंसा भड़क गई थी और कुकी समाज में आक्रोश पैदा हो गया था।
मणिपुर हिंसा में अभी तक 200 के करीब लोगों की जान जा चुकी है, कई घायल हैं, अपराध चरम पर पहुंच चुका है। हैरानी की बात ये है कि इतने महीनों बाद भी जमीन पर तनाव कम नहीं हुआ है, रोज की हिंसक घटनाएं सामने आ रही हैं। पुलिस के साथ भी तल्खी बढ़ चुकी है और लगातार हमले होते दिख रहे हैं। अब इसी बात को समझते हुए हाई कोर्ट ने अपने ही पुराने आदेश को बदलने का काम किया है।
असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
उसी मांग को देखते हुए पिछले साल कोर्ट ने कहा थ कि राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की इस मांग पर विचार करना चाहिए। उसके बाद से राज्य में हिंसा भड़क गई और अब कई महीनों बाद हाई कोर्ट को ही अपने फैसले को पलटना पड़ा। हाईकोर्ट में जस्टिस गोलमेई की बेंच ने कहा है कि अदालतें अपने दम पर अनुसूचित जनजाति की सूचि में संशोधन नहीं कर सकती है, इसी वजह से पुराने फैसले में भी संशोधन करना पड़ा है।