मणिपुर में स्थिति एक बार फिर विस्फोटक रूप ले चुकी है, आलम ये चल रहा है कि पहाड़ी जिलों में एक बार फिर AFSPA लगा दिया गया है। इंटरनेट भी सस्पेंड कर दिया गया है और कई जगहों से हिंसा की खबरें आ रही हैं। इसी कड़ी में गुरुवार को मणिपुर के थौबल जिले में बीजेपी ऑफिस को उग्रवादियों ने आग के हवाले कर दिया। आग इतनी ज्यादा लग गई कि पूरा दफ्तर ही जल कर खाक हो गया।

क्या-क्या हो गया मणिपुर में?

अब यहां ये समझना जरूरी है कि पिछले 24 घंटे में मणिपुर में स्थिति काफी तेजी से बदली है। जब से छह जुलाई से लापता चल रहे दो बच्चों की मौत की खबर आई है, स्थानीय लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर चल रहा है। पुलिस के साथ फिर भिड़ंत देखने को मिल रही है, पथराव हो रहा है और जगह-जगह आगजनी भी हो गई है। सबसे पहले बात बीजेपी दफ्तर में लगी आग की जाए तो जिस समय इस साजिश को अंजाम दिया गया, वहां कोई भी मौजूद नहीं था। लेकिन जो तस्वीर सामने आई है, उसमें आग इतनी विक्राल दिखाई पड़ रही है कि अगर कोई वहां होता तो उसका बचना मुश्किल रहता।

निशाने पर बीजेपी दफ्तर, पहले भी हुई आगजनी

वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जब मणिपुर में बीजेपी के दफ्तर को इस तरह से निशाना बनाया गया हो। इससे पहले जून महीने में भी इसी थौबल जिले में तीन बीजेपी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया था। इसके अलावा खिड़कियां तोड़ दी गई थीं और एक गाड़ी के शीशे को भी फोड़ा गया था। ऐसे में तनाव की स्थिति तो मणिपुर में लगातार बनी हुई है, बीच में कुछ शांति जरूर हुई थी, लेकिन दो बच्चों की मौत ने उसे फिर अशांत कर दिया है।

कई जगहों पर फिर पुलिस और आम लोगों के बीच में ही संघर्ष की स्थिति बनती दिख रही है। सुरक्षाबलों को भी मजबूरी में आंसू गैस के गोले दागने पड़ रहे हैं, कई जगहों पर तो लाठीचार्ज भी किया गया है। इसी स्थिति को देखते हुए केंद्र ने पहाड़ी जिलों में एक अक्टूबर से अगले छह महीने तक के लिए AFSPA लागू कर दिया है। वहीं जो दो बच्चों की मौत हुई है, उस केस को भी सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया है।

मणिपुर हिंसा का कॉमन पैटर्न

वैसे मणिपुर में हिंसा का एक कॉमन पैटर्न भी देखने को मिल रहा है। असल में पिछली बार दो महिलाओं के वायरल वीडियो के बाद से हिंसा शुरू हुई थी, इस बार दो छात्रों की मौत ने माहौल को गरमा दिया है। इसी वजह से कुछ जगहों को छोड़कर सरकार ने भी पूरे राज्य को अशांत घोषित कर दिया है। वैसे इस पूरे मामले की जड़ भी मणिपुर का वो विवाद है जो वैसे तो कई सालों से चला आ रहा है, पिछले कुछ महीनों ने इसने अपना रौद्र रूप दिखा दिया है।

विवाद की असल जड़ क्या है?

असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।

हाल ही में हाई कोर्ट ने एक टिप्पणी में कहा था कि राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की इस मांग पर विचार करना चाहिए। उसके बाद से राज्य की सियासत में तनाव है और विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है।