मणिपुर में कई दिनों बाद फिर हिंसा का दौर देखने को मिला है। संदिग्ध कुकी उग्रवादियों की तरफ से ड्रोन से बम बरसाए गए हैं जिसमें दो लोगों की मौत की खबर है, कई घायल भी बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि कोत्रुक और कडांगबांड घाटी को इस बार कुकी उग्रवादियों ने निशाना बनाया है, उनकी तरफ से ऊंची पहाड़ियों से बमबारी की गई है। इस हमले में दो लोगों की मौत हुई है, दो पुलिसकर्मी और टीवी रिपोर्टर भी जख्मी बताया गया है।
मणिपुर में अब कहां हुई हिंसा?
इस हिंसा को लेकर कोत्रुक गांव के पंचायत अध्यक्ष ने विस्तार से बताया है। उनके मुताबिक रविवार दोपहर दो बजे से बमबारी और गोलीबारी शुरू हो गई थी। यह वो समय था जब गांव में अधिकारी और वॉलेंटियर मौजूद नहीं थे। उसी बात का फायदा उठाते हुए अचानक से हमला शुरू कर दिया गया। जानकारी मिली है कि इस हमले में कई घरों को नुकसान पहुंचा है।
हिंसा का ये पैटर्न ज्यादा डराने वाला क्यों?
मणिपुर: लोगों ने बताई आपबीती
अभी के लिए इस नए हमले के बाद से ही स्थानीय लोगों में जबरदस्त नाराजगी है। उनक दो टूक कहना है कि राज्य सरकार के तमाम आश्वासन के बावजूद भी उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिल पाई है, वे डर के माहौल में जीने को मजबूर हैं। इस मामले का मणिपुर सरकार ने भी संज्ञान ले लिया है और कड़े शब्दों में इसकी निंदा की है। सरकार ने ही इस बात की जानकारी दी है कि हमले के दौरान अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ। बड़ी बात यह है कि इन उग्रवादियों के बाद रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड तक मौजूद थे।
कर्फ्यू लगाने की नौबत कहां आई?
अब इस हिंसा के बाद इम्फाल के पश्चिमी जिले में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इलाके में भारी पुलिस बल भी तैनात है और स्थिति को नियंत्रण में रखने कोशिश की जा रही है। अब स्थानीय प्रशासन के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती यह है कि उग्रवादियों के पास अत्याधुनिक हथियार पहुंच चुके हैं, उनके दम पर बड़े स्तर पर हमले तक किए जा रहे हैं। वैसे मणिपुर में जो हिंसा देखने को मिल रही है, उसकी जड़ एक कई साल पुरानी मांग है।
मणिपुर विवाद की असल जड़ क्या है?
असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।