2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। इस बीच गांधीजी और हिन्दुत्व के जनक कहे जाने वाले विनायक दामोदर सावरकर के बीच के संबंधों की चर्चा हो रही है। इन दोनों शख्सियतों में एक बात समान थी कि दोनों की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था थी, उस पर दृढ़ विश्वास था लेकिन धर्म को देखने और समझने का नजरिया अलग-अलग था। दोनों अपनी-अपनी तरह से उसकी व्याख्या करते थे।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक महात्मा गांधी और विनायक सावरकर के बीच पहली मुलाकात लंदन में एक प्रवासी कार्यक्रम में 1909 में हुई थी। यह अवसर था दशहरा उत्सव का, जब प्रवासी गैर हिन्दू भारतीयों ने इसका आयोजन किया था। उस वक्त विनायक सावरकर लंदन पढ़ने गए हुए थे। उसी सभा में वो अपने बड़े भाई नारायण सावरकर के साथ पहुंचे थे। गांधी जी और सावरकर बंधुओं ने तब मंच साझा किया था।
उस दशहरा उत्सव में महात्मा गांधी ने भगवान श्रीराम को निस्वार्थ और मित्रतावादी बताते हुए उनका चरित्र चित्रण मानव कल्याण करने वाली सहिष्णु शक्ति के रूप में किया था लेकिन सावरकर ने मां दुर्गा देवी के विनाशकारी संहारक रूप की चर्चा करते हुए उन्हें शक्ति की देवी और प्रतीक बताया था और कहा था कि यही शक्ति बुराइयों का अंत कर सकती है।
इन दोनों के विचारों में एकरूपता नहीं थी। दोनों अलग-अलग रास्ते के मुसाफिर थे। महात्मा गांधी जहां अविभाजित स्वतंत्र भारत की कल्पना में विश्वास करते थे, वहीं सावरकर के मन में एक ‘हिंदू राष्ट्र’ का विचार था। हालांकि, कई मुद्दे ऐसे थे जिनपर दोनों की राय एक जैसी होती थी। अस्पृश्यता एक ऐसा ही विषय था जिस पर दोनों नेताओं के विचार एक जैसे थे। इनके अलावा दोनों स्त्री-पुरुष श्रमिकों के अधिकार पर भी एक जैसे विचार रखते थे।
बीबीसी के मुताबिक बहुचर्चित किताब ‘द आरएसएस-आइकॉन्स ऑफ द इंडियन राइट’ के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय बताते हैं कि जब गांधी और सावरकर के बीच लंदन में मुलाकात हुई थी तब गांधी महात्मा नहीं थे। सिर्फ मोहनदास करमचंद गाँधी थे और उनकी कर्मभूमि भी भारत नहीं बन पाई थी।”
बतौर मुखोपाध्याय, “लंदन में इन दोनों के बीच मुलाकात का सिलसिला चलता रहा। एक बार जब सावरकर ने गांधी को खाने की दावत पर बुलाया तो गांधी ने ये कहते हुए खाने से मना कर दिया था कि वो न तो गोश्त खाते हैं और न ही मछली, जबकि सावरकर ने उनके लिए झींगा मछली बनाई थी। गांधी जी के इनकार का सावरकर ने तब मजाक भी उड़ाया था कि जो गोश्त नहीं खा सकता वह अंग्रेजों की ताकत को चुनौती कैसे दे सकता है? उस रात गांधी सावरकर के कमरे से बिना भोजन किए और सत्याग्रह आंदोलन के लिए उनसे किसी तरह का समर्थन लिए बिना ही लौट गए थे।”

