महाराणा प्रताप शूरवीर होने के साथ ही कोमल हृदय वाले इंसान भी थे। उनका जन्म 9 मई, 1540 को कुम्हलगढ़ में हुआ था। वह अपनी पहली पत्नी महारानी अजाब्दे पंवार से बेहद प्यार करते थे। अजाब्दे सुंदरता के साथ ही कुशाग्र बुद्धि की भी धनी थीं। उनके पिता राव ममरख सिंह और माता रानी हंसा बाई का ताल्लुक सिसोदिया वंश से था। वह महाराणा प्रताप की 11 पत्नियों में से एक थीं। इतिहासकारों का मानना है कि शादी से पहले ही दोनों एक-दूसरे को जानते थे। महाराणा प्रताप और अजाब्दे न केवल एक-दूसरे को प्रेम करते थे, बल्कि दोनों की बीच विश्वास और सम्मान का भी भाव था। बताया जाता है कि दोनों पहले एक अच्छे दोस्त थे। यही दोस्ती समय के साथ प्रेम में बदल गया था। शादी के पहले ही दोनों के बीच इतना विश्वास था कि महाराणा प्रताप खुद और मेवाड़ साम्राज्य के बारे में कई गोपनीय सूचनाएं अजाब्दे से साझा किया करते थे। अतुलनीय शौर्य के धनी महाराणा प्रताप अजाब्दे से इस हद तक प्रेम करने लगे थे कि उनके पिता महाराजा उदय सिंह ने 17 वर्ष की आयु में ही दोनों की शादी कर दी थी। महारानी अजाब्दे तब 15 वर्ष की ही थीं।

मुश्किल हालात में भी नहीं छोड़ा साथ: चित्तौड़ पर कब्जा करने के कारण महाराणा प्रताप का मुगल सम्राट अकबर के साथ छत्तीस का आंकड़ा था। अकबर ने शुरुआत में महारणा से दोस्ती करने की कोशिश की थी। वह चाहते थे कि महाराणा मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन जाएं, लेकिन राजपूत शासक को यह किसी भी सूरत में मंजूर नहीं था। इसके कारण मेवाड़ और मुगल शासक के बीच जारी टकराव ने युद्ध का रूप ले लिया था। महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच 1576 में हल्दीघाटी में युद्ध हुआ था। इसमें मुगलों का नेतृत्व राजा मानसिंह ने किया था। महज चार घंटे तक चले युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने अरावली पर्वत श्रृंखला में पनाह लेकर मुगलों के साथ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया था। महारानी अजाब्दे ने इस मुश्किल क्षण में भी महाराणा का साथ नहीं छोड़ा था। इतिहासकार तो यहां तक मानते हैं कि महाराणा प्रताप हर गंभीर मसले पर महारानी से सलाह-मशवरा करते थे। अजाब्दे हर मौके पर उन्हें अपनी राय देती थीं।

महाराणा प्रताप को सिंहासन नहीं सौंपना चाहते थे उदय सिंह: महाराणा प्रताप मेवाड़ के शासक महाराजा उदय सिंह की संतानों में सबसे बड़े थे। उदय सिंह शुरुआत में महाराणा को सिंहासन नहीं सौंपना चाहते थे। वह छोटे बेटे जगमाल को राजा बनाने के पक्षधर थे। महाराणा भी अपनी पिता की इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ का शासक नहीं बनना चाहते थे। हालांकि, राजपूत साम्राज्य के विद्वतजन महाराणा प्रताप को ही राजा बनाने के पक्ष में थे। उनका मानना था कि जगमाल तत्कालीन परिस्थितियों से निपटने में सक्षम नहीं थे, लिहाजा वे महाराणा प्रताप को गद्दी पर बिठाने के पक्ष में थे। आखिरकार दरबारी विद्वानों की बात मानते हुए उदय सिंह ने महाराणा प्रताप को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।