हवलदार हंगपन दादा को मरणोपरांत अशोक चक्र से नवाजा जाएगा। रविवार को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सरकार ने वीरता पुरस्कारों का एलान किया। हंगपन दादा इसी साल 27 मई को उत्तरी कश्मीर में घुसपैठियों से लड़ाई के दौरान शहीद हो गए थे। बलिदान देने से पहले उन्होंने चार आतंकियों को मार गिराया था। मारे गए आतंकी हथियारों से लैस होकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से भारतीय सीमा में घुस आए थे। अशोक चक्र शांति काल में एक सैनिक को मिलने वाला सबसे बड़ा सम्मान होता है।
हवलदार हंगपन अरुणाचल प्रदेश के बोदुरिया गांव के रहने वाले थे। अपनी टीम में वे दादा के नाम से लोकप्रिय थे। शहादत से एक साल पहले उनकी पर्वतीय क्षेत्र में पोस्टिंग हुई थी। वे 1997 में असम राइफल्स में शामिल हुए थे। वे काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन के तहत 35 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। मई महीने के आखिरी सप्ताह में उनकी टीम को आतंकी नजर आए। इसके बाद 24 घंटे तक मुठभेड़ चलती रही। दुश्मनों से सीधी टक्कर लेने के लिए वे आ्गे बढ़े और छुपे हुए दो आतंकियों को मार गिराया। एक अन्य आतंकी को उन्होंने हाथापाई में ढेर कर दिया था। इस दौरान दादा भी बुरी तरह से जख्मी हो गए।
हंगपन दादा की बहादुरी के चलते उनके बाकी साथियों को कोई नुकसान नहीं हुआ। उनके परिवार में अब पत्नी चेजन लोवांग, 10 साल की बेटी रोखिन और छह साल का बेटा सेनवांग है। अशोक चक्र के साथ ही सरकार ने 81 अन्य वीरता पुरस्कारों का भी एलान किया है। इसके तहत 14 शौर्य चक्र, 63 सेना मेडल, दो नौसेना मेडल और दो वायुसेना मेडल शामिल है।

