दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन पर 35 फुट बर्फ के नीचे छह दिन मौत से लड़ने वाले लांस नायक हनुमनथप्‍पा कोप्‍पड़ की वीरता पर आज पूरा राष्‍ट्र रश्‍क कर रहा है। भारत माता के इस वीर सपूत को देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है, लेकिन आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि हनुमनथप्‍पा को सेना ने 8 बार रिजेक्‍ट कर दिया था। हनुमनथप्‍पा के करीबी बताते हैं कि सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना उनका सपना था। लेकिन गरीब किसान परिवार के बेटे के लिए यह सबकुछ इतना आसान नहीं था। उन्‍हें कनार्टक के धारवाड़, गडग और बेलागावी सैन्‍य भर्ती केंद्रों से 8 बार-बार निराश होकर लौटना पड़ा था। हालांकि, ऐसा नहीं था कि हनुमनथप्‍पा के पास दूसरा कोई विकल्‍प नहीं था, पर वह सिर्फ और सिर्फ सेना में भर्ती होना चाहते थे। जब-जब उन्‍हें रिजेक्‍ट किया गया, तब-तब उनके करीबियों ने उन्‍हें कुछ और करने की सलाह दी, लेकिन हनुमनथप्‍पा ने हार नहीं मानी और अंत में वह 19 मद्रास रेजिमेंट के लिए चुन लिया गया।

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हनुमनथप्‍पा के बड़े भाई गोविंद ने बताया कि सेना में उनका चयन ऊटी में हुई भर्ती के दौरान हुआ था। लेकिन हनुमनथप्‍पा के लिए परीक्षा की घड़ी खत्‍म नहीं हुई थी। सेना में भर्ती होने के कुछ समय बाद ही उन्‍हें जम्‍मू-कश्‍मीर में देश की सेवा करने का मौका मिला। इसके अलावा उत्‍तर-पूर्व के हिंसाग्रस्‍त इलाकों में भी वह तैनात रहे थे। हनुमनथप्‍पा की कार्यक्षमता और मानसिक शक्ति उन्‍हें सियाचिन की ऊंचाइयों तक ले गई, जहां उन्‍होंने पांच दिनों तक मौत से जंग लड़ी।

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गरीबी में बीता हनुमनथप्‍पा का बचपन

लांस नायक हनुमनथप्‍पा का बचपन गरीबी में बीत था। उनका घर धारावाड़ के बेतादुर गांव में है। यहीं पर रहकर उन्‍होंने अपनी स्‍कूली शिक्षा पूरी की, जिसके लिए उन्‍हें करीब 6 मील पैदल चलकर जाना पड़ता था। 33 वर्ष के हनुमनथप्‍पा अच्‍छे कबड्डी प्‍लेयर भी थे। 14 साल की अपनी नौकरी में उन्‍होंने 10 साल कठिन परिस्थितियों में नौकरी की, जिसमें जम्‍मू-कश्‍मीर और उत्‍तर-पूर्व जैसी पोस्टिंग शामिल हैं। वह सियाचिन में अगस्‍त 2015 से तैनात थे। 3 फरवरी को जब हिमस्‍खलन आया, तब वह सियाचिन की सोनम पोस्‍ट पर तैनात थे। हनुमनथप्‍पा ने 25 अक्‍टूबर 2002 को सेना ज्‍वॉइन की थी।

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