आरएसएस के नागपुर मुख्यालय पर आयोजित कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के जाने पर हंगामा मचा है। चूंकि उनका जुड़ाव कांग्रेस से रहा है, इस नाते कांग्रेसी इसका विरोध कर रहे हैं। हालांकि यह कोई पहली दफा नहीं है जब आरएसएस और कांग्रेस नेता के बीच संवाद कामय हुआ। इससे पहले लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री थे,तब वह आरएसएस के दूसरे सरसंघचलाक गुरुजी को अपनी मीटिंग में बुला चुके हैं।ऐसा एक किताब में दावा किया गया है।
बात 1965 की है।जब पड़ोसी पाकिस्तान से युद्ध के चलते अशांति की स्थिति थी।17 दिन तक चले इस युद्ध की विभीषिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि द्वितीय विश्युद्ध के बाद यह दूसरी ऐसे लड़ाई थी जिसमे बख्तरबंद वाहनो और टैंकों का जबर्दस्त प्रयोग हुआ। युद्ध उस समय शुरू हुआ, जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश की थी। सूचना मिलने पर तत्तकालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सेना को हमला कर मुंहतोड़ जवाब देने का आदेश दिया था।भारत की जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और घुसपैठियों को पीछे हटना पड़ा था।पाकिस्तान की बुरी स्थिति देखकर तब संयुक्त राष्ट्र ने पहल कर युद्ध खत्म कराया था। 23 सितंबर 1965 को दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम की घोषणा हुई। हालांकि उस वक्त भारत पाकिस्तान को पराजित कर चुका था। युद्ध के दौरान देश में जनता के बीच राष्ट्रवादी भावनाएं उफान मार रहीं थीं। बहादुरी और राष्ट्रवादी भावना के तमाम किस्से प्रचलित रहे। इसमें से एक किस्सा संघ से भी जुड़ा है।
जब पाकिस्तान से युद्ध छिड़ा था, देश संकट में था, आंतरिक अशांति का भी खतरा मंडरा रहा था। सरकार का पूरा ध्यान सरहद की सुरक्षा पर था। ऐसे में केंद्र सरकार को लगा कहीं आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था न डगमगा जाए, इसके लिए तब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पार्टी लाइन से परे जाकर संघ के तत्कालीन सरसंघचालक(मुखिया) माधव सदाशिव गोलवल्कर को मीटिंग में आमंत्रित किया। उसने दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने के लिए प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की मदद मांगा। मुख्य मकसद दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था का सुचारु संचालन था।
प्रधानमंत्री की अपील पर गुरुजी ने स्वयंसेवकों को दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था संचालन अपने हाथ में लेने को कहा। जिससे युद्ध के दौरान दिल्ली में यातायात व्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इस बात का जिक्र डॉ. हरिश्चंद्र बर्थवाल ने अपनी पुस्तक-द आरएससःएन इंट्रोडक्शन में किया है। पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि तब शास्त्री की अपील पर संघ के स्वयंसेवकों ने सीमा पर जाकर जवानों को राशन भी बांटा।बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है-नेहरू के विपरीत शास्त्री जनसंघ और आरएसएस से किसी तरह की वैचारिक शत्रुता नहीं रखते थे। वह गुरुजी को अक्सर राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए बुलाते थे।