अफ्रीकी देश नामीबिया से लाई गई मादा चीता आशा ने मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में मौजूद कूनो राष्ट्रीय उद्यान में तीन शावकों को जन्म दिया है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने बुधवार को यह जानकारी दी। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री यादव ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट किया और लिखा, ‘‘जंगल में शावकों की आवाज गूंजी। यह जानकारी साझा कर खुशी हो रही है कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान तीन नए सदस्यों का स्वागत कर रहा है। शावकों को नामीबिया से लाई गई मादा चीता आशा ने जन्म दिया है।’’

उन्होंने इस घटना क्रम को ‘चीता प्रोजेक्ट टीम’ की शानदार सफलता करार दिया।भूपेंद्र यादव यादव ने पोस्ट किया, ‘‘परियोजना से जुड़े सभी विशेषज्ञों, कूनों राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों और पूरे देश के वन्यजीव प्रेमियों को मेरी ओर से शुभकामनाएं।’’ इससे पहले मार्च 2023 में मादा चीता सियाया ने चार शावकों को जन्म दिया था, लेकिन एक ही शावक जिंदा बच पाया था। सियाया का नाम बाद में ज्वाला रखा गया था। ज्वाला को भी नामीबिया से लाकर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बसाया गया था।

क्यों मर रहे चीते?

कूनो नेशनल पार्क में एक के बाद एक करके हो रही चीतों की मौतों पर प्रोजेक्ट चीता में शामिल अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत में बसाने के लिए कम उम्र के ऐसे चीतों का चयन चाहिए जो मानव की उपस्थिति के आदी हो। विशेषज्ञों ने चीतों को फिर से बसाने के लिए कूनो के स्थान पर अन्य स्थलों की पहचान करने की सलाह दी। कूनो में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से दो ग्रुपों में चीते लाए गए हैं।

सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा कि कम उम्र के चीते नए माहौल में आसानी से ढल जाते हैं। अधिक उम्र के चीतों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर भी अधिक होती है।

कम उम्र के नर चीते अन्य चीतों को लेकर अपेक्षाकृत कम आक्रामक व्यवहार दिखाते हैं, जिससे चीतों की आपसी लड़ाई में होने वाली मौत का खतरा कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत की दर दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके कारण मीडिया में कई नकारात्मक समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित हुए हैं, लेकिन यह मौत की तादाद कोई गहरी चिंता का विषय नहीं है।