मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में एक और चीते की मौत हो गई है। सूरज नाम के चीते ने शुक्रवार को दम तोड़ दिया। इस तरह से अब तक आठ चीतों की मौत हो चुकी है। तीन दिन पहले ही तेजस ने भी दम तोड़ दिया था, इससे पहले मार्च महीने में भी एक चीता की मौत हुई थी। लगातार हो रही मौतों से ये सवाल उठना लाजिमी है- क्या चीतों को भारत का मौसम रास नहीं आ रहा? क्या चीते किसी बीमारी से ग्रसित हैं?
कूनों क्या चीतों के लिए सही ठिकाना नहीं?
अब आठवें चीते की जो मौत हुई है, उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है। इस वजह से मौत का सटीक कारण किसी को नहीं पता। इससे पहले एक चीते की मौत की वजह किडनी का इंफेक्शन रहा था। कुछ चीते एक दूसरे से भी लड़ते रहते हैं, जिस वजह से उन्हें गहरे जख्म मिल जाते हैं। अब घटनाएं कई हो चुकी हैं, लेकिन अभी भी वन विभाग के पास कोई स्पष्ट कारण नहीं है। लेकिन कुछ समय पहले एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया कि कूनो की कम जगह चीतों के असहज होने का बड़ा कारण है।
जरूरत से ज्यादा चीते आ गए?
Conservation Science and Practice के नाम से एक जर्नल छपा है जिसमें नामीबिया के वैज्ञानिकों ने भारत के प्रोजेक्ट चीता की नीयत को तो सही माना है, लेकिन कुछ कमियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। उन्हीं कमियों में सबसे बड़ी परेशानी कूनो नेशनल पार्क में जरूरत से ज्यादा छोड़े गए चीतों को लेकर है। रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि जब चीतों को घूमने के लिए ज्यादा जगह नहीं मिलेगी तो वे पास के दूसरे गांवों में घुस सकते हैं, उस स्थिति में संघर्ष की स्थिति बन सकती है।
अफ्रीका से अलग कैसे माहौल?
यहां ये समझना भी जरूरी है कि भारत की स्थिति दक्षिण अफ्रीका से काफी अलग है। वहां पर चीतों के लिए काफी बड़ा इलाका मौजूद है, 100 वर्ग किलोमीटर में एक से भी कम चीता रहता है। अभी के लिए कूनो नेशनल पार्क में जानकारों के बीच इस बात पर सहमति बन रही है कि कम से कम 12 चीतों को किसी दूसरी जगह पर शिफ्ट किया जाए, लेकिन कब तक ऐसा होगा, ये स्पष्ट नहीं।