साल 1929 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरु ने जब ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वराज की मांग की थी उस समय 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के लिए चुना गया था। इसलिए कांग्रेस 1930 से भारत की आजादी तक इसे मनाती रही। इसलिए सवाल उठता है कि फिर 15 अगस्त भारत की आजादी का दिन कैसे बना? ब्रिटिश संसद ने लॉर्ड माउंटबेटन को 30 जून 1948 तक सत्ता का ट्रांसफर करने अधिकार दिया। सी राजगोपालचारी ने इस बारे में कहा था कि यदि वह जून 1948 तक इंतजार करते तो को ट्रांसफर करने के लिए कोई सत्ता ही नहीं बचती। इसलिए माउंटबेटन ने तारीख को अगस्त 1947 कर दिया। उस समय माउंटबेटन ने दावा किया कि तारीख बढ़ाकर वे यह तय कर रहे हैं कि दंगे ना हो। हालांकि बाद में जब उनका दावा गलत साबित हुआ तो उन्होंने सफाई में कहा, ”जहां कहीं भी औपनिवेशिक शासन खत्म हुआ है वहां पर खून बहा है। यह कीमत आपको चुकानी होगी।”
माउंटबेटन के सुझावों के आधार पर 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में भारत की आजादी का बिल पेश किया गया। 15 दिन बाद इसे पास कर दिया गया। इसके तहत 15 अगस्त 1947 तक ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की बात कही गई। फ्रीडम एट मिडनाइट किताब के अनुसार माउंटबेटन ने दावा किया था, ”जो तारीख मैंने चुनी थी वह संयोग से मिली। मैंने इसे एक सवाल के जवाब में चुना था। मैं यह बताना चाहता था कि पूरे घटनाक्रम का मालिक मैं हूं। जब उन्होंने पूछा कि हमने कोई तारीख तय की है तो मैं जानता था यह जल्द होना चाहिए। मैंने सोचा यह अगस्त और सितम्बर में होनी चाहिए और फिर 15 अगस्त कहा। क्यों? क्योंकि यह जापान के सरेंडर की दूसरी बरसी थी।”
तो फिर पाकिस्तान को 14 अगस्त को आजादी कैसे मिल गई? वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं। भारतीय आजादी बिल ने दोनों देशों के लिए 15 अगस्त को चुना था। पाकिस्तान की ओर से जारी पहले स्टांप में आजादी के दिन के रूप में 15 अगस्त का ही जिक्र है। पाकिस्तान के नाम पहले भाषण में जिन्ना ने कहा था, ”15 अगस्त स्वतंत्र और संप्रभु पाकिस्तान का जन्मदिन है। यह मुस्लिम राष्ट्र की किस्मत के पूरे होने की निशानी है।” 1948 में पाकिस्तान ने 14 अगस्त को आजादी के दिन के रूप में मनाना शुरू कर दिया। इसका कारण या तो 14 अगस्त 1947 को कराची में सत्ता का हस्तांतरण होना था या फिर 14 अगस्ता 1947 को रमजान का 27वां दिन होना था।
