केरल हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही मैरिटल रेप के मामले में सजा देने का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है लेकिन इस आधार पर तलाक का दावा किया जा सकता है।
एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी के प्रति पति का अनैतिक व्यवहार और उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंधों के लिए जोर देना भी मैरिटल रेप ही है। भले ही मैरिटल रेप को लेकर क़ानूनी रूप से सजा देने का प्रावधान नहीं हो लेकिन इसके आधार पर तलाक का दावा किया जा सकता है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में पीड़ित महिला ने कोर्ट के सामने कहा कि डॉक्टर से रियल एस्टेट कारोबारी बने उसके पति ने उसके साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया। उसके पति ने रियल एस्टेट के कारोबार के लिए उसके ऊपर पैसे देने का दबाव बनाया। जिसके बाद पीड़िता के पिता ने उसके पति को 77 लाख रुपए दिए।
साथ ही पीड़ित महिला ने कोर्ट ने बताया कि उसके पति ने उसके साथ शारीरिक हिंसा की। बीमार होने के बावजूद उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। इतना ही नहीं उसके पति ने उसकी मां के मृत्यु के दिन भी शारीरिक संबंध बनाने का दबाव दिया। इसके अलावा उसके पति ने उसे अप्राकृतिक यौन संबंध और उसकी बेटी के सामने भी शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।
इसपर कोर्ट ने कहा कि महिला के द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों से पता चलता है कि उसके साथ यौन हिंसा हुई है और पति ने अपनी पत्नी की सहमति का कोई सम्मान नहीं किया है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप तब होता है जब पति इस धारणा के तहत होता है कि उसकी पत्नी का शरीर का अधिकार उसके पास है। लेकिन आधुनिक सामाजिक न्याय शास्त्र के अनुसार विवाह में पति-पत्नी को समान भागीदार माना जाता है और पति अपने पत्नी पर किसी भी श्रेष्ठ अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे देश में विवाह कानूनों में बदलाव करने का समय आ गया है। विवाह और तलाक को अब धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी के अनुसार शादी करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन उसे कानून से मुक्त नहीं किया जा सकता है।