गुरुवार रात के 8 बजे के करीब जब थंगमणि ने एक तेज़ आवाज़ सुनी तो उन्हें पता चल गया कि पहाड़ी नीचे आ रही है। बाद में मिट्टी, पेड़ और बोल्डर उनके घर के दोनों किनारों को लील चुके थे। मूसलाधार बारिश और इस भयावह त्रासदी के बीच पूरी रात वह अपने पति को पकड़े रखें थीं। जब शुक्रवार सुबह वह अपने घर से बाहर आईं तो मंज़र काफी ख़ौफ़नाक था। उन्होंने देखा कि उनके पड़ोस के दर्जनों घर अदृश्य हो गए चुके हैं। सिवाय उनके घर को छोड़ सारे पड़सियों के मकान मलबे में समा गए हैं। इस लैंड-स्लाइड ने सब कुछ खत्म कर दिया था। चारो तरफ मलबे का कींचड़ फैला हुआ था।

इस त्रासदी को देखकर हर किसी का दिल दहल गया। रविवार तक मालापुरम जिले के कवलप्परा के लापता लोगों की खोजबीन चलती रही। अभी तक ज़मीदोज हुए घरों के 50 लोग लापता बताए जा रहे हैं, जबकि 13 लोगों के शव मलबे से निकाले जा चुके हैं। इस विभिषिका में मारे गए लोगों के शवों को निकालने और बचाव कार्य में स्थानीय लोगों के साथ एनडीआरएफ और मद्रास रेजिमेंट के जवान भी लगे हुए हैं। इस त्रासदी में आश्चर्यजनक रूप से बंची 49 साल की थंगमणि कहती हैं, “सभी को लगा कि हम मर चुके हैं। हमने भी नहीं सोचा था कि हम जिंदा बचेंगे। अगर हम मर भी जाते तो मैं एक साथ (पति और पत्नी) मरना चाहते थे। लेकिन, ईश्वर ने हमें बचा लिया।”

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केरल में हालांकि बारिश की प्रचंडता में कमी जरूर देखी जा रही है। लेकिन, आधिकारिक रूप से बीते एक महीने में राज्य में बाढ़ से मरने वालों की संख्या 72 के पार पहुंच चुकी है। अधिकारियों ने जानकारी दी कि अभी तक 73,076 परिवारों के 2.51 लाख लोगों सुरक्षित जगह रिलीफ कैंप में शिफ्ट किया जा चुका है। राज्य के मंत्री केटी जलील जो मलापुरम त्रासदी में बचाव कार्य देख रहे हैं, उन्होंने बताया, “इस त्रासदी के वक्त हर कोई बेबस था।” कवलप्परा में पहाड़ के खीसकने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “पहाड़ी के नीचे बसे पूरी आबादी 50 फिट नीचे मलबे में दब चुकी है। सभी घरों तक पहुंच बनाने के लिए रेक्सक्यू दल को काफी गहरी खुदाई करनी पड़ रही है। आज हमने घाटी के ऊपरी इलाकों में खोजबीन की है जहां हमने घरों को कुछ फिट नीचे स्पॉट किया है।”

हालिया मंज़र को देखते हुए थंगमणि बताती हैं कि वह और उनके पति ने काफी मेहनत से अपना घर खड़ा किया था। लेकिन, अब सब कुछ तबाह होने के बाद उनकी हिम्मत टूट सी गई है। वह कहती हैं, “हम हमेशा अपने खुद के घर में रहना चाहते थे। लिहाजा मेरे पति ने बतौर दैनिक मजदूरी का काम शुरू कर दिया और मैं गाय, बकरी और मुर्गियों की देखभाल में व्यस्त रही। आखिरकार हम एक छोटा सा प्लॉट खरीदे और अपनी सेविंग से एक घर बनाया। अब यह फिर से खड़ा करना नामुमकिन है। मेरे पति को हार्ट-सर्जरी हुई है और वह चलने-फिरने में नाकाम हैं। हमारे बच्चे भी नहीं हैं। अब मैं सोचती हूं कि काश उस रात हमारा मर जाना ही अच्छा रहता।”