स्वच्छ और निर्मल गंगा के लिए संत आत्माबोधानंद पिछले 180 दिनों से अनशन पर बैठे है। केरल के रहने वाले इस संत में अब गंगा सफाई की दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं होती देख कर जल त्यागने का फैसला किया है। संत आत्माबोधानंद ने इस संबंध में पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है। टीओआई से बातचीत में संत ने कहा, ‘मैंने गंगा की सफाई की सभी उम्मीद छोड़ दी है और इस पवित्र नदी के लिए अपनी जान देने में मुझे कोई डर नहीं है।’
संत आत्माबोधानंद ने कहा कि उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को पत्र लिखा है। संत का कहना है कि वह भले ही स्वच्छ गंगा के लिए अनशन कर रहे हैं लेकिन न तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार ने गंगा की सफाई को लेकर उनकी मांगों पर ध्यान दिया है। उन्होंने अपने पत्र में 11 मांगें रखी हैं।
पत्र में संत ने लिखा है कि आपकी गंगा को साफ नहीं करने की मंशा के कारण 27 अप्रैल से जल त्यागकर अपनी जान देने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। पत्र में गंगा और उसकी सभी सहायक नदियों (भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर और धौलीगंगा) पर बने मौजूदा बांधों और प्रस्तावित परियोजनाओं को रद्द करने को कहा है।
पत्र में गंगा के मैदानी इलाकों (विशेषकर हरिद्वार में) खनन और वनों को काटने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इसके अलावा नदी के संरक्षण के लिए गंगा एक्ट को लागू करने व स्वायत्त गंगा भक्त परिषद् का गठन करने की भी मांग शामिल है। संत ने कहा कि सरकार ने स्व. जीडी अग्रवाल जी से वादा किया था कि प्रस्तावित जल बिजली परियोजना का निर्माण नहीं किया जाए और खनन पर भी रोक लगेगी। लेकिन हरिद्वार में स्थिति बिल्कुल ही अलग है।
यहां खनन जारी रहने के साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नमामि गंगे निर्देशों का उल्लंघन हो रहा है। आत्माबोधानंद ने कहा कि वह जल का त्याग करना विरोध का सबसे कड़ा रूप है जिससे मैं भी अग्रवाल जी की तरह अपने शरीर को गंगा को बचाने के लिए त्याग दूंगा। उन्होंने दावा किया कि गंगा के आसपास बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के निर्माण कार्य जारी है। गंगा तेजी से अपने औषधीय गुणों को खो रही है और इसका पानी भी पीने लायक नहीं बचा है।
