कांग्रेस से बगावत कर भाजपा के समर्थन से कुछ समय के लिए अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कलिखो पुल का मृत शरीर मंगलवार (9 अगस्त) सुबह उनके घर में पाया गया। शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने फांसी लगा ली। पर ऐसा क्यों किया, इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है। वह कुछ दिन पहले ही नाटकीय घटनाक्रम के तहत मुख्यमंत्री पद से हटाए गए थे। 47 साल के कलिखो पुल के नाम का मतलब है ‘बेहतर कल’। इस नाम को उन्होंने जिंदगी में सार्थक भी किया था। वह बढ़ई से चौकीदार और फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। कलिखो पुल का अंजाव जिले में हवाई के वल्ला गांव में हुआ था। वह केवल 13 महीने के थे, जब उनकी मां कोरानलु दुनिया छोड़ गईं। इसके पांच साल बाद पिता का भी साया उठ गया। चाची ने पालन-पोषण किया, लेकिन जिंदगी दुश्वार हो गई। स्कूल जाने के बजाय उन्हें जंगल जाना पड़ता था। वहां से लकड़ियां चुन कर लाते थे।
एक इंटरव्यू में यह कहानी बयां करते हुए पुल ने बताया था, ‘मैं स्कूल नहीं जा पाया। जब दस साल का था तब हवाई क्राफ्ट सेंटर में बढ़ईगीरी का कोर्स किया। यह कोर्स दो साल का था। वहां स्टाइपेंड भी मिलता था। कोर्स खत्म करने के बाद वहीं ट्यूटर के तौर पर काम करने का मौका मिल गया। यह काम 96 दिन तक चला। असल में ट्यूटर छु्ट्टी पर चले गए थे, तो मुझे उनकी जगह लगा दिया गया था। उन दिनों सेना और सरकार के बड़े अफसर ऑर्डर देने के लिए सेंटर पर आया करते थे। मैं उन्हें रोज आते देखता था। उन्हें देख कर मेरे मन में पढ़ने की ललक जगी। तो मैंने एक वयस्क शिक्षा केंद्र में दाखिला लिया। रात को मैं वहां जाता था। उस केंद्र में एक दिन कोई कार्यक्रम था। उस कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री और डिस्ट्रिक्ट कलक्टर सहित कई बड़े लोग आए थे। मैंने हिंदी में स्वागत भाषण दिया और एक देशभक्ति गाना भी गाया। डिस्ट्रिक्ट कलक्टर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत मुझे डे बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करवाने का आदेश दे दिया। कुछ ही दिन में छठी क्लास में मेरा दाखिला हो गया। वहां पढ़ाई के दौरान ही मैंने सर्किल ऑफिस में चौकीदार की नौकरी कर ली। मेरा काम तिरंगा लहराना और झुकाना था।’
Former Arunachal Pradesh CM Kalikho Pul passes away in Itanagar, Arunachal Pradesh. pic.twitter.com/3rmRuo2KA3
— ANI (@ANI) August 9, 2016
उसके बाद के वर्षों में पुल ने पान की दुकान भी चलाई और ठेकेदारी भी किया। पहले उन्होंने गांव में कच्चे घर बनाने का ठेका लेना शुरू किया। बाद में पक्के घर भी बनवाने लगे। इसके बाद उन्होंने एक-एक कर चार ट्रक खरीदे। इस बीच अर्थशास्त्र से ग्रेजुएशन किया और कुछ समय के लिए कानून की पढ़ाई भी की।
कलिखो पुल को गरीबी के साथ बीमारी ने भी परेशान कर रखा था। 1980 से छह साल तक वह क्रोनिक गैस्ट्रिक से परेशान रहे थे। उनके पास मात्र 1600 रुपए थे। इलाज के लिए उन्होंने अपने रिश्तेदारों के आगे हाथ भी फैलाया। पर एक ने दो, तो दूसरे ने पांच रुपए दिए। तब उन्हें गहरा सदमा लगा था। इंटरव्यू में इसे जाहिर करते हुए उन्होंने कहा था, ‘मुझे उस वक्त लगा था कि मैं वाकई अनाथ हूं। एक दिन तो मैंने खुदकुशी का मन बना लिया था। लोहित नदी के पुल पर चला गया। वहां 36 मिनट तक खड़ा रहा, लेकिन लोगों की भीड़ के चलते नदी में छलांग नहीं लगा सका।’ यह एक तरह से पुल के लिए नए जीवन की शुरुआत थी। तभी एक अफसर उनकी जिंदगी में फरिश्ता बना कर आया। यह वही अफसर था जिसने स्कूल में उनका दाखिला करवाया था। पुल ने उस अफसर से 2500 रुपए कर्ज लिए और अपना इलाज करवाया। पुल उस वक्त को कभी नहीं भूले। शायद इसीलिए उनके सरकारी बंगले पर बीमारी के लिए मदद पाने वाले ग्रामीण लोगों की भीड़ लगी रहती थी और वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर खुशी महसूस करते थे। पुल का राजनीतिक सफर करीब 24 साल का रहा और इसमें 23 साल वह मंत्री रहे।
1996 में कलिखो पुल की जब शादी हुई तब भी वह गेगोंग अपांग की सरकार में मंत्री थे। जिस सर्किल ऑफिस में वह चौकीदारी किया करते थे, वहां से केवल 32 मीटर की दूरी पर उनकी शादी हुई थी। उस दिन वह बेजार होकर रोए थे। उन्होंने कहा था, ‘सर्किल ऑफिस में जिस तिरंगे को वह लहराते और उतारते थे, वह आज मेरी सरकारी गाड़ी में लगा होता है।’ पुल ने बढ़ई के सारे औजार भी संभाल कर रखे थे और गर्व से कहते थे, ‘ये औजार आज भी मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं।’ पुल का भगवान में बिल्कुल यकीन नहीं था। वह साफ कहते थे, ‘अगर ईश्वर होता तो मेरे साथ इतना बुरा नहीं होने देता।’
https://youtu.be/CCCZJxVDG2Q