इतिहासकार रोमिला थापर ने जेएनयू प्रशासन को अपना सीवी भेजने से इनकार कर दिया है। थापर ने यूनिवर्सिटी को पत्र लिखकर अपने दर्जे का आशय स्पष्ट किया है। द हिंदू से बाचतीत में इतिहासकार थापर ने बताया कि उनकी सीवी भेजने की कोई मंशा नहीं है। मुझे पत्र भेजकर वे खुद को विरोधाभासी साबित कर रहे हैं।
वास्तव में जब एमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया गया था तब कहा गया था कि यह आजीवन है। अब वह इससे पीछे हट रहे हैं। उन्होंने नियमों में बदलाव किया है और अब वह उसे लागू कर रहे हैं। प्रोफेसर थापर ने कहा कि एमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा पहले के किए गए कामों के आधार पर दिया जाता है। यह भविष्य की उम्मीदों पर आधारित कैसे हो सकता है?
इन सब के पीछे विश्वविद्यालय प्रशासन की मंशा पर प्रोफेसर थापर ने कहा कि वे इसे सड़क छाप संस्थान बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है ये दुर्घटनावश नहीं बल्कि जानबूझ कर किया गया है। मालूम हो कि विश्वविद्यालय ने इतिहासकार रोमिला थापर समेत 11 प्रोफेसर को पत्र लिखकर उन लोगों से सीवी मांगा था।
जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने कहना था कि एमेरिटस प्रोफेसर के कामों का मूल्यांकन करने के लिए उनका सीवी मंगाया गया है। यह फैसला विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल ने लिया है। बताया जा रहा है कि जिन एमेरिटस प्रोफेसर का सीवी मंगाया गया है उन सभी की उम्र 75 साल से अधिक है।
वहीं, इस पूरे विवाद के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से भी सफाई दी गई। मंत्रालय ने कहा कि प्रोफेसर एमेरिटस का दर्जा प्राप्त किसी भी व्यक्ति की सेवा समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। मंत्रालय के सचिव आर. सुब्रमण्यम ने ट्वीट कर लिखा, शिक्षाविदों समेत किसी को भी प्रोफेसर एमेरिटस के दर्जे से वंचित करने की कोई पहल नहीं की गई है।
जिन लोगों से सीवी मांगा गया है उनमें प्रोफेसर रोमिला थापर के अलावा पूर्व कुलपति आशीष दत्ता, मशहूर वैज्ञानिक आर. राजारमण, प्रोफेसर एचएस गिल, सीके वार्ष्णेय, संजय गुहा, योगेंद्र सिंह, डी बनर्जी, टीके ओम्मेन, अमित भादुड़ी और शीला भल्ला शामिल हैं।

