जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने प्रदेश प्रशासन को बिना कारण बताए नेताओं और अन्य लोगों को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत हिरासत में लिए जाने पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने प्रशासन द्वारा पीएसए के तहत कम से कम पांच हिरासतों को भी रद्द कर दिया। साथ ही कहा कि प्रशासन ने इन्हें हिरासत में रखने का आधार नहीं बताया। इसके अलावा कोर्ट ने प्रशासन के आदेश को संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी बिना कारण बताए हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
उल्लेखनीय है कि इस साल पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान निरस्त होने के बाद इस कानून के तहत हिरातस से जुड़ी कई याचिकाओं को चुनौती दी गई। इनमें पांच याचिकाओं पर कोर्ट ने अलग-अलग दिन सुनवाई की और हिरासत में लिए लोगों को रिहा करने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि प्रशासन के आदेश संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन करते हैं। बता दें कि कोर्ट की निगरानी में पांच अगस्त से हिरासत में लिए 300 से अधिक याचिकाओं के मामले में सुनवाई होगी।
इन पांच मामले में कोर्ट ने रद्द किए प्रशासन के आदेश-
16 अगस्त को दिए अपने फैसले में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता एजाज हुसैन रिजवी की नजरबंदी से संबंधित श्रीनगर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 29 अगस्त के हिरासती आदेश को रद्द कर दिया।
13 दिसंबर को कोर्ट ने कुपवाड़ा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता नजीर अहमद मीर के हिरासती आदेश को रद्द कर दिया। नजीर को सात अगस्त को हिरासत में लिया गया था। मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ संपूर्ण दस्तावेज पेश नहीं किए गए, जो कि अनुच्छेद 22(5) के तहत उसके संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित करता है।
इसी तरह 9 दिसंबर को हाईकोर्ट ने श्रीनगर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता इम्तियाज अहमद को हिरासत में लेने से संबंधित 19 अगस्त के आदेश को इसी आधार पर निरस्त कर दिया।
तीन आगस्त को हाईकोर्ट ने कुलगाम जिला मजिस्ट्रेट द्वारा परवेज अहमद पाला की नजरबंदी को इस आधार पर रद्द कर दिया कि प्रशासन ने उसे हिरासत में लेने के प्रासंगिक आधार नहीं बताए।
एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने आठ नवंबर को 20 अगस्त को श्रीनगर जिला प्रशासन द्वारा पारित मंजूर अहमद शेख से जुड़े नजरबंदी के आदेश को रद्द कर दिया। शेख को पारिमपोरा पुलिस थाने में दर्ज एक मामले में ट्रायल कोर्ट ने भी जमानत दे दी थी।
जानना चाहिए कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा निरस्त करने के बाद प्रदेश को दो केंद्र शासित प्रदेशों ‘जम्मू-कश्मीर व लद्दाख’ में विभाजित कर दिया। इसमें लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी।
