झारखंड के पलामू में जिले में एक सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने इंसानियत की मिसाल पेश की। उन्होंने एक लड़के की जान बचाने के लिए ब्लड डोनेट करने के साथ ही बाहर से दवा और टेस्ट का इंतजाम किया। यही नहीं उन्होंने लड़के की सर्जरी भी की। पालामू के डाल्टनगंज शहर के सदर अस्पताल में दो महीने में डॉक्टर प्रवीण सिद्धार्थ ने ज्वाइन किया। सप्ताह के अंत में उन्होने, उनके साथी डॉक्टरों और स्टाफ ने एक 14 साल के लड़के को खून दिया है और सीटी स्कैन तथआ अन्य जरुरी चीजों का इंतजाम किया, जो कि अस्पताल में मौजूद नहीं था। इसके अलावा बाहर से दवा अरेंज करके अपने रिस्क पर लड़के की सर्जरी की।
जमशेदपुर के रहने वाले पेशे से रिक्श चालक ऋषि कपूर ने कहा कि मेरे बच्चा तो मर चुका था, उसको जिंदगी डॉक्टरों और वहां के लोगों ने दी। वह सोमवार रात को अपने बेटे साहिल को घर ले गए। कपूर का बेटा 10 अप्रैल को घर ने निकला था। डॉक्टर सिद्धार्थ ने पीएमओ के ट्विटर हैंडल पर लड़के के बारे में जानकारी दी तब स्थानीय मीडिया और सरकार को इस बात की जानकारी मिलीष 13 अप्रैल को रेलवे पुलिस एक अनजान लड़के को सदर अस्पताल लेकर आई, जिसका एक पैर करीब-करीब कट चुका था, बाएं कोहनी की हड्डियां टूट चुकी थीं और पूरे शरीर में गहरी खरोंचे थी। लड़के के सिर पर गंभीर चोटें आई थी और जिसके कारण वह जीरो पल्स पर था। यह सब डाल्टनगंज रेलवे स्टेशन के पास एक तेज ट्रेन से गिरने के कारण हुआ था।
पलामू के सिविल सर्जन डॉक्टर कलानंद मिश्रा ने कहा कि लड़के को तुरंत खून की जरुरत थी लेकिन अस्पताल के ब्लड बैंक में उस ग्रुप का खून उपलब्ध नहीं थी। तो हमारे स्टाफ में से एक शख्स ने खून दान किया लेकिन यह भी काफी नहीं था। दूसरे अस्पताल के डॉक्टर सुशील पांडे और अन्य लोगों ने खून दिया। पैंडे ने कहा कि उस समय उस एक जिंदगी की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। यह एक मानवीय प्रतिक्रिया थी और हमारे पूरे स्टाफ ने इसमें रुचि दिखाई और सहयोग किया। बहुत से लोगों ने सर्जरी करने के लिए मना क्योंकि मरीज के परिजन मौजूद नहीं थे। डॉक्टर सिद्धार्थ ने कहा कि अगर संक्रमित भाग को हटाया नहीं जाता, तो पैर में सेप्टिक होना शुरू हो जाता और वह घातक साबित हो सकता था। इसके 15 अप्रैल को लड़के का ऑपरेशन करने का फैसला लिया गया। मेरे सहयोगियों और वरिष्ठ डॉक्टरों ने इसमें सहयोरग किया।
डॉक्टर सिद्धार्थ ने कहा कि हमने मरीज को बेहोश (anaesthesia) किया और संक्रमित भाग को अलग करने के लिए सर्जरी शुरू की। जिसके चलते खून की जरुरत पड़ी, जो कि स्वाभाविक थी। हमने शाम तक इंतजार किया और जब ब्लड बैंक से खून का इंतजाम नहीं हो सका तो हमारी बारी थी खून देने की। डॉक्टर ने लोगों से अपील की है कि वह डॉक्टरों पर अपना विश्वास बनाए रखें।