जाने माने गीतकार एवं पटकथा लेखक जावेद अख्तर का कहना है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों की तरह बर्ताव करने वाले कुछ हिंदू समूहों को छोड़ दिया जाए तो भारतीय समाज हमेशा सहिष्णु रहा है। अख्तर ने मंगलवार रात एक साहित्य समारोह में कहा, ‘मैंने 1975 में मंदिर में एक हास्य दृश्य दिखाया था। मैं आज ऐसा नहीं करूंगा लेकिन 1975 में भी मैं मस्जिद में ऐसा दृश्य नहीं दिखाता क्योंकि वहां असहिष्णुता थी। अब दूसरा पक्ष उसकी तरह व्यवहार कर रहा है। अब वे इस जमात में शामिल हो रहे हैं….यह त्रासदीपूर्ण है। हिंदू मत कहिए। यह गलत नुमांइदगी है। ये कुछ हिंदू समूह हैं।’

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हालांकि उन्होंने आमिर खान अभिनीत हिंदी फिल्म ‘पीके’ का उदाहरण देते हुए कहा कि हिंदुओं ने ही इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर सफल बनाया। सलीम खान के साथ मिलकर ‘शोले’, ‘डॉन’, ‘सीता और गीता’ और ‘दीवार’ समेत बॉलीवुड की कई सफल फिल्मों की पटकथा लिखने वाले अख्तर ने कहा, ‘मुझे वाकई इस बात को लेकर संदेह है कि यदि आप किसी इस्लामी देश में मुस्लिम प्रतीकों को लेकर इसी प्रकार की फिल्म बनाएंगे तो क्या वह सुपरहिट होगी। हम विवादों की स्थिति में अतिवादी रूख अपना लेते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि समाज में असहिष्णुता खतरे के स्तर पर पहुंच गई है। मुझे इस बात पर भरोसा नहीं है। कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि कोई असहिष्णुता नहीं है। मुझे उन पर भी भरोसा नहीं है। असलियत इस दोनों स्थितियों के बीच है। सच्चाई यह है कि भारतीय समाज हमेशा सहिष्णु था और है। समाज के कुछ ऐसे वर्ग हैं जो हमेशा भिड़े रहते हैं।’

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उनके अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला देश में कोई नया चलन नहीं है। अख्तर ने कहा, ‘अभिव्यक्ति की आजादी पर हमेशा किसी न किसी तरह का हमला होता रहा है। हम एक लेख में और सम्मेलन में कोई बात कह सकते हैं लेकिन आप एक डॉक्यूमेंट्री और एक फीचर फिल्म में वही बात नहीं कह सकते। यह हमेशा से ऐसा ही रहा है।’ उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने से इनकार करते हुए कहा, ‘क्योंकि मैं जानता हूं कि यह पुरस्कार मुझे लेखकों ने दिया है तो मुझे इसे क्यों लौटाना चाहिए? लेखक इस जूरी का हिस्सा होते हैं, न कि पुलिसकर्मी या नौकरशाह।’ लेखक रस्किन बॉन्ड ने कहा कि साहित्य निकाय लोगों की हत्या होने से नहीं रोक सकता। उन्होंने भी अपना अकादमी पुरस्कार लौटाने से इनकार कर दिया है।