जम्मू-कश्मीर चुनाव में दूसरे चरण की वोटिंग भी संपन्न हो गई है। इस बार दूसरे चरण में 57.03 प्रतिशत वोट पड़े हैं, पहले चरण की तुलना में यह कम है। अब सभी पार्टियों की तरफ से दावा होना शुरू हो गया है कि दो चरणों की वोटिंग के बाद वे आगे चल रहे हैं, उनकी जीत पक्की है। अब असल नतीजे तो 8 अक्टूबर को आने वाले हैं, लेकिन अगर समीकरण समझने की ज्यादा ही जल्दी है तो आगे-पीछे वाली रेस को वोटिंग पैटर्न से भी समझा जा सकता है। चुनाव में किसी सीट पर कितना वोट बढ़ता है या घटता है, इसका सीधा असर हार-जीत पर भी देखने को मिल जाता है।

जम्मू-कश्मीर: दूसरी चरण की बड़ी सीटें

अब उसी पहल पर आगे बढ़ते हुए फिर आपको बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में दो चरणों की वोटिंग के बाद कौन आगे चल रहा है- बीजेपी- पीडीपी, एनसी-कांग्रेस? अब देखिए दूसरे चरण में 26 सीटों पर वोट पड़े हैं, ऐसा माना गया है कि इस बार जिन सीटों पर वोटिंग हुई, वहां पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा है। अगर पहले चरण में पीडीपी की पकड़ वाली सीटें थी, अब इस चरण में असल परीक्षा एनसी की देखने को मिली है। दूसरे चरण में गंदरेबल, बडगाम, शाल्टेंग, नौशेरा, चन्नपोरा, सुरनकोट, रियासी, माता वैष्णो देवी सीट, बीरवाह, गुलबर्ग ऐसी सीटें रही हैं जिन्हें हाई प्रोफाइन माना जा सकता है।

कई बड़े चेहरों की किस्मत ईवीएम में कैद हुई है, उमर अब्दुल्ला से लेकर रवेंद्र रैना, अल्ताफ बुखारी से लेकर सैयद मुश्ताक तक की सीट पर कड़ी टक्कर देखने को मिली है। आइए ऐसी ही 8 सीटों के बारे में यहां जानते हैं और उनके वोटिंग पैटर्न को डीकोड करने की कोशिश करते हैं।

सीटइस बार की वोटिंग (%)2014 की वोटिंग (%)2008 की वोटिंग (%)
गंदरेबल56.6059.1 (NC)51.8 (NC)
बडगाम51.0966.3 (NC)55.2 (NC)
नौशेरा7281.4 (BJP)73.0 (NC)
सुरनकोट74.9577.2 (CONG)74.9 (CONG)
रियासी72.0680.8 (BJP)73.5 (BJP)
बीरवाह66.9474.6 (NC)57.2 (PDP)
गुलबर्ग73.4982.18 (CONG)77.5 (NC)
ईदगाह36.9527.8 (NC)22.1 (NC)

कम, ज्यादा… समान, वोट प्रतिशत क्या बताता है?

अब अगर इन सीटों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि कुछ पर तो पिछले चुनावों जैसा ही ट्रेंड देखने को मिल रहा है, वोटिंग प्रतिशत में ना बड़ा उछाल देखने को मिल रहा है और ना ही कोई बड़ी गिरावट देखने को मिल है। लेकिन कुछ ऐसी भी सीटे हैं जहां पर या तो वोटिंग प्रतिशत में बड़ा उछाल या पिर बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। अब सियासत पर नजर रखने वाले मानते हैं कि अगर एक्ट्रीम वोटिंग देखने को मिलती है, यानी या तो काफी कम या काफी ज्यादा, उस स्थिति में मौजूदा विधायक की मुश्किल बढ़ सकती, उसकी सीट फंस सकती है। वही अगर ज्यादा फर्क देखने को नहीं मिलता तो उसे वर्तमान विधायक के पक्ष में माना जाता है।

पहले चरण के बाद किसे फायदा- PDP,BJP, कांग्रेस या NC?

उमर अबदुल्ला की गंदरेबल सीट का अनुमान

अब इसी बात को ध्यान में रखते हुए अगर गंदरेबल सीट की बात करें तो यहां से नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला चुानव लड़ रहे हैं। इस सीट को एनसी का पारिवारिक गढ़ भी माना जाता है। उमर के दादा शेख अब्दुल्ला, उनके पिता उमर अब्दुल्ला और अब वे खुद दूसरी बार इस सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प इसलिए है क्योंकि पीडीपी के बशीर मीर ने पूरी ताकत झोंक रखी है। अब इस बार के चुनाव में गंदरेबल में 56.60 फीसदी वोटिंग देखने को मिली है। अगर 2014 की बात करें तो तब 59.1 प्रतिशत वोट पड़े थे। अगर सिर्फ 10 सालों के लिहाज से देखें तो गंदरेबाल सीट पर सिर्फ 2.5 फीसदी वोटिंग कम हुई है, इसे किसी भी लिहाज से एक्ट्रीम वोटिंग की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

अगर 2008 के चुनाव की बात करें तो तब इसी सीट पर 51.8 फीसदी मतदान हुआ था। तब भी यह सीट नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने नाम की थी। इसके बाद 2014 में जब 59.1 फीसदी मतदान हुआ, फिर एनसी ने ही जीत दर्ज की। बड़ी बात यह रही कि 2008 से 2014 के बीच में 7.3 फीसदी वोट का उछाल देखने को मिल गया। लेकिन उसके बाद भी एनसी के हाथ से वो सीट नहीं छिटकी, ऐसे में इस बार भी यहां पर उमर अब्दुल्ला की राह आसान मानी जा रही है।

उमर अब्दुल्ला की बडगाम सीट का अनुमान

लेकिन उमर की ही एक और सीट बडगाम में इस बार वोटिंग का मिजाज थोड़ा अलग संदेश देता दिख रहा है। इस सीट पर 51.09 फीसदी वोटिंग हुई है, इसे काफी कम माना जा रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि 2014 के विधानसभा चुनाव में बडगाम सीट पर 66.3 प्रतिशत मतदान देखने को मिला था। यानी कि इस बार सीधे-सीधे 15.21 फीसदी वोटिंग कम हुई है। स्थिति को और स्पष्ट समझने के लिए 2008 विधानसभा चुनाव के आंकड़े पर गौर करना भी जरूरी है। उस चुनाव में 55.2 प्रतिशत वोट पड़े थे, यानी कि 2014 में 11.1 फीसदी वोटिंग ज्यादा हुई थी। अब तब जब वोटों में 10 फीसदी से भी बड़ा उछाल रहा, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की, उसने अपनी सीट बचा ली। लेकिन इस बार वोटिंग बढ़ने के बजाय कम हो गई है, वो भी गिरावट का आंकड़ा 15.21 फीसदी है।

इसे एक तरह की एक्ट्रीम वोटिंग में रखा जा सकता है, यानी कि उमर बडगाम में जीत की गारंटी नहीं मान सकते। उनको पीडीपी के सैयद मुंतजिर मेहदी से कड़ी टक्कर मिल रही है। बडगाम सीट को लेकर यह समझना जरूरी है कि यह उस बारामूला लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है जहां से हाल ही में उमर अब्दुल्ला को हार का सामना करना पड़ा था। इंजीनियर राशिद ने उन्हें बड़े अंतर पराजित कर दिया था। लेकिन उसी लोकसभा क्षेत्र में बडगाम इलाके में उनकी लीड देखने को मिली थी, इसी वजह से इस सीट पर दांव चला गया है। अब बडगाम का वोटिंग पैटर्न एनसी की धड़कने बढ़ाने वाला है क्योंकि उमर को सुनिश्चित जीत की गारंटी नहीं मिल पा रही है।

नौशेरा सीट को लेकर क्या अनुमान?

बीजेपी के लिए सबसे जरूरी सीट नौशेरा भी इस पार कन्फ्यूज करने वाले ट्रेंड दे रही है। इस सीट पर 72% वोटिंग देखने को मिली है। बीजेपी के रविंदर रैना इस सीट से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। अब बीजेपी के लिए थोड़ी चिंता इसलिए बढ़ रही है क्योंकि इस बार नौशेरा की वोटिंग में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। 2014 के चुनाव में नौशेरा सीट पर 81.4 फीसदी वोटिंग हुई थी, तब बीजेपी ने ही जीत दर्ज की। अब 2014 के अब 9.4 फीसदी की गिरावट आ गई है।

इसी सीट पर 2008 में 73 प्रतिशत वोटिंग हुई थी और तब नेशनल कॉन्फ्रेंस ने वो सीट अपने नाम की। अगर और पीछे चला जाए तो 2002 में इसी सीट पर 57.9 फीसदी वोटिंग हुई और कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। अब तीनों ही चुनाव की वोटिंग को समझने की कोशिश करते हैं। 2002 की तुलना में जब 2008 में 15.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली, सीट पर सत्ता परिवर्तन हो गया और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की। इसी तरह 2014 में फिर 8.4% का इजाफा हुआ और बीजेपी ने जीत दर्ज की। यानी कि जब-जब वोटिंग में इजाफा हुआ, सीट पर सत्ता बदल गई। अब इस बार उल्टा हो गया है। वोटिंग में 9.4 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है, इसे किसी भी लिहाज से छोटा नहीं माना जा सकता। इस सीट का ट्रेंड बता रहा है कि एक्स्ट्रीम वोटिंग की वजह से सत्ता भी हर विधानसभा चुनाव में बदल रही है, ऐसे में इस बार क्या फिर नौशेरा में ऐसा ही कुछ होने वाला है?

रियासी सीट को लेकर क्या अनुमान?

वैसे एक्ट्रीम वोटिंग की झलक उस रियासी सीट पर भी देखने को मिल रही है जहां पर इसी साल एक आतंकी हमला हुआ था। पिछली बार इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, इस बार भी उसे काफी उम्मीद है। रियासी सीट पर इस बार 72.06% वोटिंग देखने को मिली है, 2014 यह आंकड़ा 80.8 फीसदी था। ऐसे में इस बार 8.74 प्रतिशत वोट कम पड़े हैं। अगर थोड़ा पीछे चला जाए तो 2008 में इसी सीट पर 73.5 प्रतिशत वोटिंग देखने को मिली थी, अगर उसकी 2014 से तुलना करें तो 7.3 फीसदी वोटिंग में बढ़ोतरी हो गई। लेकिन मेज की बात यह है कि इस सीट पर दोनों बार बंपर वोटिंग के बाद भी बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, ऐसे में इस बार जब अब वोटिंग कम हुई है, 9% के करीब वोट कम पड़े है, बीजेपी इसे बहुत अच्छा ट्रेंड नहीं मानेगी।

बीरवाह सीट को लेकर क्या अनुमान?

कश्मीर की बीरवाह सीट पर आ जाएं तो यहां इस बार 66.94 फीसदी वोटिंग देखने को मिली है। पिछले 16 सालों में इस सीट पर एक बार पीडीपी और एक बार एनसी ने जीत दर्ज की है। 2014 के चुनाव में बीरवाह सीट पर 74.6 फीसदी वोटिंग हुई थी, यानी कि इस बार 7.66 फीसदी की कमी देखी गई है। इससे पहले 2008 में जब इसी सीट पर 57.2% वोटिंग हुई थी, पीडीपी ने जीत दर्ज की। अब 2008 से तो 2014 में 17.4 प्रतिशत की निर्णायक बढ़ोतरी देखने को मिली और सीट पर सत्ता परिवर्तन हो गया। 2002 के चुनाव में भी बीरवाह में 35.1 फीसदी वोटिंग हुई थी, तब पीडीपी ने जीत दर्ज की। अब इस सीट का ट्रेंड बता रहा है कि बंपर वोटिंग होने पर सीट पर सत्ता परिवर्तन हो रहा है, ऐसे में इस बार वोटिंग में कमी आई है, क्या माना जाए कि फिर एनसी यहां से जीत सकती है?

वैष्णो देवी सीट पर बंपर वोटिंग

अब यह सारी तो वो सीटें हैं जो कई साल पहले ही अस्तित्व में आ चुकी हैं, लेकिन दूसरे चरण की एक खास बात यह रही है कि कई ऐसी सीटों पर भी वोट पड़े हैं जो परिसीमन के बाद बनी हैं। उदाहरण के लिए दूसरे चरण में सेंट्रल शाल्टेंग, चन्नपोरा और माता वैष्णो देवी सीट पर वोटिंग हुई है। यहां भी माता वैष्णो देवी सीट की चर्चा करना जरूरी हो जाता है क्योंकि दूसरे चरण में सबसे ज्यादा वोटिंग यही देखने को मिली है। इस सीट पर 80.74 प्रतिशत वोटिंग हुई है।

बीजेपी ने इस सीट से बलदेव राज शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है, वही कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इस सीट की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि बीजेपी को अपना उम्मीदवार ही बदलना पड़ गया था। पार्टी को डर है कि लोकसभा चुनाव में अयोध्या और बद्रीनाथ सीट पर जिस तरह से उसे हार का सामना करना पड़ा, पता चले कहीं हिंदू बाहुल वैष्णो देवी सीट पर भी ऐसा ही खेल ना हो जाए।

बीजेपी के लिए अयोध्या रिपीट या होगी जीत?

वैसे पहले वैष्णो देवी क्षेत्र को रियासी सीट के अंदर ही माना जाता था। वहां पर पिछले दो बार से बीजेपी ने जीत दर्ज की है। अब जब बंपर वोटिंग यहां देखने को मिली है, ऐसा माना जा रहा है कि मुकाबला टक्कर का नहीं होगा, किसी एक पार्टी के पक्ष में वोट जा सकते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि वैष्णो देवी सीट पर बारीदार वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है, वो इस समय बीजेपी से कुछ नाराज भी हैं, ऐसे में क्या अयोध्या रिपीट होने वाला है? बीजेपी इसी बात से परेशान है।