जम्मू-कश्मीर में पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो गई है। 61 फीसदी के करीब मतदान हुआ है, जिसे चुनाव आयोग अच्छा मान रहा है। अब यह रिकॉर्ड मतदान तो नहीं है, लेकिन क्योंकि 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं, उस लिहाज से इसे एक अच्छा संकेत जरूर माना जा रहा है। अभी तक चुनाव आयोग की तरफ से जो आंकड़े सामने आए हैं, उससे जरूर पता चलता है कि कौन सी सीट पर बंपर वोटिंग हुई है और कहां पर वोटरों का मिजाज कुछ फीका देखा गया है।

पहले चरण की 10 बड़ी सीटें

इसके ऊपर अगर 2014 के विधानसभा चुनाव को डीकोड किया जाए तो उससे भी पता चल सकता है कि कौन सी सीट पर कैसा वोटिंग पैटर्न देखने को मिलता है। अब पहले चरण में वैसे तो 24 सीटों पर वोट पड़े हैं, लेकिन हाई प्रोफाइल सीटें चुनिंदा हैं, ऐसे में उनके समीकरण ही समझने की कोशिश करते हैं। पहले चरण की हाई प्रोफाइल सीटें इस प्रकार हैं- पंपोर, त्राल, पुलवामा, कुलगाम, डूरू, अनंतनाग, बनिहाल , भद्रवाह, देवसर और डोडा। अब इनमें से कई सीटें दक्षिण कश्मीर की पड़ती हैं जहां पर महबूबा मुफ्ती की पार्टी की पकड़ मानी जाती है।

पिछले चुनाव बता रहे सीटों का वोटिंग पैटर्न

अब इन सभी सीटों का वोटिंग पैटर्न समझने के लिए हमने 2014 और 2008 के वोटिंग प्रतिशत को समझने की कोशिश की है। एक हैरान कर देने वाला पैटर्न यह सामने आया है कि इस बार की वोटिंग 2014 से ज्यादा 2008 वाले विधानसभा चुनाव से मेल खा रही है। कई सीटों पर तो समान ही वोटिंग प्रतिशत देखने को मिल गया है। एक नजर इस टेबल पर डालिए-

सीटइस बार की वोटिंग (%)2014 की वोटिंग2008 की वोटिंग
पंपोर44.7446.8 (PDP)43.4 (PDP)
त्राल43.2138.3 (PDP)48.7 (PDP)
पुलवामा50.4238.1 (PDP)40.8 (PDP)
कुलगाम62.7656.5 (LEFT)61.7 (LEFT)
डूरू61.6165 (CONG)69.8 (PDP)
अनंतनाग45.6239.7 (PDP)41.3 (PDP)
बनिहाल71.2873.8 (CONG)67.6 (CONG)
भद्रवाह67.1870.2 (BJP)65.3 (CONG)
देवसर57.3364.6 (CONG)68.7 (PDP)
डोडा72.4880.1 (BJP)73.0 (CONG)

पंपोर सीट से क्या मिल रहे संकेत?

अब ऊपर वाली टेबल को अगर समझने की कोशिश की जाए तो पता चलता है कि कुछ सीटों पर लगातार पीडीपी जीत रही है, वोटिंग प्रतिशत में अगर पांच फीसदी से ज्यादा का भी उछाल भी देखने को मिल रहा है, फिर भी वो सीट पीडीपी ने अपने नाम की है। उदाहरण के लिए पंपोर सीट की बात करें तो 2014 में पीडीपी ने यहां जीत दर्ज की थी। तब उस सीट पर 46.8 फीसदी वोट पड़े थे। वही अगर और पीछे चला जाए तो 2008 के विधानसभा चुनाव में पंपोर सीट पर 43.4 फीसदी वोटिंग रही थी। अब इस बार का आंकड़ा 44.74 दर्ज किया गया है। यानी कि अगर 2014 से तुलना की तो सिर्फ 2.06 प्रतिशत वोट कम पड़े हैं। इसी तरह 2014 में 2008 की तुलना में 3.4 फीसदी का उछाल आया था।

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त्राल सीट से क्या मिल रहे संकेत?

अब जानकार मानते हैं कि 2 से 3 फीसदी का अंतर ज्यादा बड़ा या निर्णायक नहीं कहा जा सकता। ऐसे में इस बार के चुनाव में भी पंपोर सीट पर पीडीपी की बढ़त देखने को मिल सकती है। अभी तक का वोटिंग पैटर्न जरूर इस ओर इशारा करता है। इसी तरह त्राल सीट के समीकरण को समझना भी जरूरी हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट पर 10 फीसदी तक का वोटिंग में अंतर एक बार देखा जा चुका है, लेकिन उस बंपर वोटिंग के बाद भी उस सीट पर सत्ता नहीं बदली और पीडीपी ने ही जीत दर्ज की। ऐसे में इस सीट पर बंपर वोटिंग भी सत्ता परिवर्तन का संकेत नहीं माना जा सकता।

इस बार के चुनाव में त्राल सीट पर 43.21 फीसदी वोटिंग रही है, 2014 की बात करें 38.3 प्रतिशत वोट पड़े थे। यानी कि इस बार 4.91 की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बड़ी बात यह है कि इसी त्राल सीट पर 2008 में 48.7 फीसदी मतदान हुआ था, वही 2014 में वो आंकड़ा 38.3 फीसदी पर गिर गया, यानी कि 10.4 की बड़ी गिरावट। लेकिन मजे की बात यह रही कि वो 10 फीसदी से ज्यादा वाली गिरावट भी यह सीट पीडीपी से नहीं छीन पाई। इस बार तो सिर्फ 4.91 फीसदी वोट ज्यादा पड़ा है, ऐसे में क्या माना जाए कि पीडीपी फिर यह सीट अपने नाम करेगी?

पुलवामा सीट से क्या मिल रहे संकेत?

अब यह दोनों सीटों तो वैसे भी पीडीपी का गढ़ रही हैं, लेकिन एक सीट ऐसी भी है जो कहने को तो महबूबा की पार्टी के पास है, लेकिन इस बार ट्रेंड बदलता दिख सकता है। असल में पुलवामा सीट पर वोटिंग प्रतिशत में एक बड़ा अंतर देखने को मिल गया है। अब यहां पर यह अंतर इसलिए मायने रखता है क्योंकि 2014 और 2008 के विधानसभा चुनाव में वोटिग में कोई ज्यादा बड़ी गिरावट या बढ़ोतरी नहीं देखने को मिली थी। पुलवामा सीट पर इस बार 50.42 प्रतिशत वोटिंग देखने को मिली है, 2014 में यह आंकड़ा 38.1 फीसदी था। अगर इस अंतर को समझने की कोशिश करें तो यह 12.32 फीसदी का बैठता है। अब इसे निर्णायक इसलिए माना जाएगा क्योंकि 2008 और 2014 में पुलवामा सीट पर वोटिंग प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं आया था, ऐसे में पीडीपी जीत गई।

इसे ऐसे समझिए, 2008 में पुलवामा सीट पर 40.8 फीसदी वोटिंग हुई थी, वही 2014 में यह आंकड़ा 38.1 पहुंच गया, यानी कि सिर्फ 2.7 फीसदी वोट कम पड़े थे। अब क्योंकि वोटों में ज्यादा अंतर नहीं रहा, माना गया कि जनता बदलाव के मूड में नहीं थी। लेकिन इस बार सीधे-सीधे 12 फीसदी से ज्यादा का उछाल आ गया है, जानकार इसे परिवर्तन का संकेत मानते हैं। अब क्या असल में भी ऐसा ही होने वाला है, यह जानने के लिए नतीजों का इंतजार करना होगा।

कुलगाम सीट से क्या मिल रहे संकेत?

वैसे जम्मू-कश्मीर की एक ऐसी सीट भी रही है जहां पर लेफ्ट ने लगातार दो बार से अपना कब्जा रखा है। उस सीट का नाम है कुलगाम। लेफ्ट का वैसे पूरे जम्मू-कश्मीर में जनाधार नहीं है, लेकिन कुलगाम की जनता की कृपा उन पर बरसती रहती है। लेफ्ट इस बात से खुश हो सकती है कि इस बार कुलगाम में वोटिंग समीकरण तो बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। उतना ही अंतर देखने को मिला है जितना पिछले दो चुनावों में रहा था। इस बार कुलगाम में 62.76 फीसदी मतदान हुआ है, 2014 में यह 56.5 था, वही 2008 में आंकड़ा 61.7 फीसदी दर्ज किया गया। अब 2008 और 2014 वाले चुनाव का वोटों वाला अंतर देखें तो वो 5.2 फीसदी रहा। इसी तरह 2014 और 2024 वाला अंतर 6.26 फीसदी दर्ज किया गया, यानी कि ना बड़ी गिरावट ना बड़ा उछाल। ऐसे में फिर इस सीट पर अगर लेफ्ट की बढ़त देखने को मिल जाए, तो हैरान नहीं होना चाहिए।

डूरू सीट से क्या मिल रहे संकेत?

डूरू सीट का रुख किया जाए तो वहां तो मुकाबला और ज्यादा दिलचस्प देखने को मिलता है। उस मुकाबले को भी वोटिंग पैटर्न समझ डीकोड किया जा सकता है। यहां पर सारा खेल 4 फीसदी वोट तय कर जाता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 2008 में डूरू सीट पर 69.8 फीसदी मतदान हुआ था, तब कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, इसके बाद 2014 के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत घटकर 65 फीसदी पर पहुंच गया और जीत पीडीपी की हो गई। अब इस बार के चुनाव में डूरू सीट पर 61.61 फीसदी वोट पड़े हैं, यानी कि 2014 की तुलना में सिर्फ 3.39 वोटों की गिरावट रही है। लेकिन यहां पर यह गिरावट भी हार-जीत तय कर सकती है, पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी डूरू से हारे जरूर थे, लेकिन अंतर मात्र 161 वोटों का रहा। ऐसे में अब जब फिर यहां वोटिंग प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं आया है, मुकाबला काफी कड़ा रह सकता है, कांग्रेस-पीडीपी में से कोई भी बाजी मार सकता है।

डोडा सीट से क्या मिल रहे संकेत?

इस बार के चुनाव में डोडा सीट का समीकरण बीजेपी को चिंता में डाल सकता है। इस सीट पर वोटिंग तो ज्यादा हुई है, लेकिन पिछली बार की तुलना में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। यह एक ऐसी सीट है जहां पर पिछले दो चुनावों में वोटिंग प्रतिशत में बड़ा उछाल और गिरावट दोनों दर्ज की गई है। इस बार डोडा सीट पर 72.48 फीसदी मतदान हुआ है, 2014 में यह आंकड़ा 80.1 फीसदी था, यानी कि इस बार जो गिरावट रही है वो पूरी 7.62 फीसदी की है। दूसरा प्वाइंट यह समझना जरूरी है कि 2008 में इस सीट पर 73 फीसदी वोट पड़े थे, 2014 में वो बढ़कर 80.1 फीसदी हो गया, यानी कि 7.1 प्रतिशत का बड़ा उछाल। दिलचस्प बात यह है कि 2008 में कांग्रेस ने डोडा सीट जीती थी, लेकिन जैसे ही वोटिंग में 7 फीसदी से ज्यादा का उछाल आया, बीजेपी ने वहां बाजी पलट दी। अब फिर 7 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिल गई है, ऐसे में अगर कांग्रेस, बीजेपी का खेल बिगाड़ दे, इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

नोट: यह सिर्फ पिछले चुनावों के वोटिंग पैटर्न के आधार पर किए गए अनुमान हैं, असल नतीजे नहीं