Atri Mitra

जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में मंगलवार (29 अक्टूबर, 2019) को हुए आतंकी हमले में पश्चिम बंगाल में मुर्शीदाबाद के पांच मजदूरों की मौत हो गई जबकि एक मजूदर ने अगले दिन हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया। इन मृतकों में से एक थे 32 वर्षीय कमरुद्दीन शेख जिन्होंने करीब एक महीना पहले मजदूरी की तलाश में कश्मीर जाने का फैसला लिया। रोजगार की तलाश जाने से पहले शेख ने अपने परिवार को बताया था कि घाटी में उन्हें अच्छी मजदूरी मिलेगी और इससे वो अपनी बड़ी बेटी रहिमा (16) का अच्छा इलाज कराने में सक्षम होंगे, जो किडनी की बीमारी से जूझ रही है। मगर मंगलवार रात पुलिस बंगाल के मुर्शीदाबाद में स्थित बहलनगर गांव एक बुरी खबर लेकर पहुंची जिससे गांव के कमरुद्दीन और अन्य पांच मजूदर के परिवार सकते में आ गए।

कमरुद्दीन की पत्नी रोशनआरा बीबी (28) कहती हैं, ‘वो तीन अक्टूबर को कश्मीर गए थे। उन्होंने सोचा कि सेब और धान की कटाई के मौसम में उनकी स्थानीय क्षेत्र के मुकाबले वहां दोगुनी कमाई हो जाएगी। इससे हमारी बेटी रहिमा के इलाज में भी मदद होगी। मगर अब सबकुछ खत्म हो गया। मैं अब क्या करुंगी?’ गांववाले कहते हैं कि मंगलवार रात जब पुलिस शोक संदेश लेकर आई तब से बहलनगर गांव में कोई सोया नहीं है। उदासी भरे गांव के लोग अब उन मजदूरों के शव बहलनगर गांव पहुंचने के इंतजार में हैं।

उल्लेखनीय है कि बहलनगर राजधानी कोलकाता से करीब 200 किलोमीटर दूर हैं और इस गांव में करीब 250 परिवार रहते हैं। यहां ज्यादातर परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर हैं और एक बड़ी आबादी मजदूरों के रूप में काम करती है। बंगाल में कटाई के मौसम में ये मजूदर धान के खेतों में काम करते हैं और दूसरे समय में ग्रामीण अच्छी कमाई की तलाश में कश्मीर और केरल जैसे राज्यों में जाते हैं। आतंकी हमले में कमरुद्दीन के अलावा जो लोग मारे गए हैं उनमें जहीरुद्दीन शेख, राफीक शेख, निजामुद्दीन शेख, रफीक-उल शेख और मुर्सलीन शेख शामिल हैं।

इसी तरह 52 साल के रफीक शेख परिवार के इकलौते ऐसे सदस्य थे जो घर चलाते थे और पिछले बीस सालों से कश्मीर में काम कर रहे थे। सोमवार को उन्होंने आखिरी बार अपनी पत्नी समीरन बीबी (40) से बात की थी। उन्होंने बताया कि काम पूरा हो चुका है और घर आने की तैयारी कर रहे हैं। समीरन कहती हैं, ‘मगर अब वो कभी वापस नहीं लौटेंगे। हमारी तीन बेटियां हैं। इनमें से दो की शादी हो चुकी हैं मगर तीसरी ससुराल में कुछ परेशानियों के चलते हमारे साथ ही रहती है। उनकी (रफीक) मां भी हमारे साथ रहती हैं। मगर मैं अब क्या करुंगी?’

वहीं रफीक-उल शेख (22) के 30 वर्षीय भाई सफिकुल कहते हैं, ‘मैं कई बार कश्मीर गया हूं मगर कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया। उग्रवादी कभी-कभी आते थे और हमें धमकाते थे मगर उन्होंने कभी हमपर हमला नहीं किया। मगर इस साल जब से विशेष राज्य का दर्जा छीना गया है तबसे हालात बदल गए हैं। हर साल 250-300 मजदूर कश्मीर जाते थे। इस साल यह संख्या घटकर 50-60 रह गई। हमने कभी नहीं सोचा कि ऐसा भी हो सकता है।’

सफिकुल ने आगे कहा, ‘मंगलवार रात 7:30 बजे मेरी मां ने सेब के बगीचे के मालिक से बात की थी जिन्हें हम ‘मालिक’ कहते हैं। उन्होंने बताया कि सबकुछ ठीक है। उसी दिन रात 11 बजे पुलिस हमारे घर आई। तब हम घर में सो रहे थे। उन्होंने हमें बुलाकर बताया कि रफीक-उल की उग्रवादी हमले में मौत हो गई। शुरुआत में हमें पुलिस की बातों पर भरोसा नहीं हुआ। तभी स्थानीय ऑफिसर इंचार्ज ने कहा कि ऐसा सचमुच हुआ है।’

अन्य मृतक कमरुद्दीन के बड़े भाई साहिर (34), जो खुद भी कई बार कश्मीर जा चुके हैं, ने बताया, ‘हमने कई आतंकी हमले देखे हैं। मगर उन्होंने मजदूरों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया। इस बार क्या हो गया? सरकार को इसका जवाब देना चाहिए। हमने तो अपना सबकुछ खो दिया। कौन इसका हर्जाना देगा?’ उन्होंने आगे, ‘कश्मीर अब बदल चुका है। अच्छी नौकरी मिलने पर भी वहां नहीं जाएंगे।’