जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन को लेकर चल रहे गतिरोध में पीडीपी की ओर से कुछ पहल किए जाने के बाद राज्य के भाजपा नेताओं ने सोमवार को यहां केंद्रीय नेतृत्व से विचार-विमर्श किया। समझा जाता है कि मुख्यमंत्री पद, अनुच्छेद 370 और एएफएसपीए जैसे मुद्दों पर केंद्रीय नेतृत्व से चर्चा की गई। इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने राजनीतिक दलों के लिए अपने वैचारिक रुख को छोड़ना कठिन बताते हुए यह भी संकेत दिया कि विवादित मुद्दों को अलग रखा जा सकता है। जाहिर है कि विवादित मुद्दों में अनुच्छेद 370, और एएफएसपीए जैसे मुद्दे शामिल हैं।
केंद्रीय नेतृत्व को ताजा स्थिति से अवगत कराने के लिए राज्य से भाजपा के कोर ग्रुप के नेताओं ने यहां पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से उनके निवास पर भेंट की। इन नेताओं ने पीडीपी से बातचीत आगे बढ़ाने के बारे में भी विचार-विमर्श किया। पार्टी महासचिव राम माधव ने इस बात की जानकारी देते हुए संवाददाताओं से कहा कि पीडीपी की ओर से कुछ पहल दिखाई गई है। इसे आगे बढ़ाने के लिए हमने पीडीपी के साथ बातचीत के मुद्दों के बारे में विचार-विमर्श किया। फिलहाल इस मामले में कुछ प्रगति हुई है।
सूत्रों के मुताबिक 90 मिनट तक चली इस बैठक में पीडीपी और भाजपा के साथ आने की स्थिति में पार्टी के प्रदेश नेताओं और प्रभारियों ने शाह से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370, आर्मड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) और मुख्यमंत्री के पद जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।
राज्य के 87 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में पीडीपी को सबसे अधिक 28 और भाजपा को 25 सीटें मिली हैं। नेशनल कांफ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें पाई हैं। शाह के साथ सोमवार को हुई बैठक में माधव के अलावा केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, प्रदेश के पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना, भाजपा प्रदेश इकाई के प्रमुख जुगल किशोर शर्मा और राज्य के वरिष्ठ नेता निर्मल सिंह व बाली भगत आदि उपस्थित थे।
माधव ने हालांकि पीडीपी के साथ अभी कोई ठोस बातचीत होने से इनकार किया और कहा कि फिलहाल अनौपचारिक चर्चाएं हो रही हैं। औपचारिक बातचीत बाद में शुरू होगी। शाह से चर्चा करने से पहले माधव ने पार्टी मुख्यालय में भाजपा के दूसरे वरिष्ठ नेताओं से भी भेंट की। माधव ने कहा- मामला आगे बढ़ा है। जब भी हम और आगे बढ़ेंगे, आपको बताएंगे। जम्मू-कश्मीर के जनादेश को ध्यान में रखते हुए हमने वार्ता को आगे बढ़ाने का निर्णय किया है।
इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि राजनीतिक दलों के लिए अपने वैचारिक रुख को छोड़ना बहुत कठिन होता है, हालांकि उन्होंने संकेत दिया कि विवादित मुद्दों को अलग रखा जा सकता है। जेटली ने इस बात पर जोर दिया कि इस संवेदनशील राज्य में सरकार तीन मुद्दों- संप्रभुता, विकास के लिए सुशासन और क्षेत्रीय संतुलन पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्य के व्यापक हित के लिए संबंधित पार्टियां साथ आएंगी।
राज्य में विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आने के बाद से सरकार बनाने को लेकर चल रहा गतिरोध सोमवार को 13वें दिन भी जारी रहा। वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि यह कहीं बड़ी लड़ाई है जो लोकतांत्रिक दलों और भारत सरकार बनाम सीमा पार से समर्थित अलगाववादियों के बीच है। उन्होंने कहा कि केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में राज्यपाल शासन लगाने पर खुश नहीं होगी क्योंकि मैं सोचता हूं कि अगर किसी राज्य को लोकप्रिय सरकार की जरूरत है तो वह जम्मू-कश्मीर है। जेटली ने भाजपा और पीडीपी के बीच बातचीत के ब्योरे का खुलासा नहीं किया। उन्होंने कहा कि वे इससे अवगत नहीं हैं।
यह पूछे जाने पर कि भाजपा धारा 370 और राज्य से आफ्सपा हटाने की पीडीपी की मांग पर अपने रुख को छोड़ सकेगी, उन्होंने एनडीटीवी से कहा- राजनीतिक दलों के लिए अपने वैचारिक रुख को छोड़ना बहुत मुश्किल होता है। क्या मैं पीडीपी या एनसी से उनके वैचारिक रुख को छोड़ने की उम्मीद कर सकता हूं? इसी तरह से अगर वे भाजपा से अपने वैचारिक रुख को छोड़ने के लिए कहते हैं तो जवाब ना होगा।
जेटली ने कहा कि एक बार जब कोई सरकार इन तीन पहलुओं (संप्रभुता, सुशासन और क्षेत्रीय संतुलन) को ध्यान में रख कर गठित की जाती है तो फिर हम इसको लेकर कोशिश कर सकते हैं कि विचाराधारा को छोड़े बिना क्या कहा जाना है और क्या नहीं कहा जाना है। उनकी यह टिप्पणी इस बात का संकेत है कि विवादित मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है।
