पिछले साल अप्रैल में जब जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में नजमा अख्तर की नियुक्ति की गई तब आरएसएस से उनकी निकटता पर खासी चर्चा हुई। उन्हें सत्तापक्ष के प्रति नरम रुख रखने वाली और संघ की गुड़िया इमेज वाली कुलपति भी कहा गया। हालांकि हाल के दिनों में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की उन्होंने खूब आलोचना की। वो एएमयू, जेएनयू के इतर जामिया यूनिवर्सिटी की लगभग ऐसी अकेली प्रमुख रहीं जिन्होंने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाई। उनका ये स्टैंड खासतौर उस समय सामने आया जब सीएए और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग प्रदर्शन को भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव का केंद्र बना दिया।
दरअसल आरोप लगते रहे हैं कि केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद संघ शिक्षण संस्थानों में अपनी पसंद के लोगों को नियुक्त करने में लगा है। जब अप्रैल 2019 में नजमा अख्तर की जामिया में नियुक्ति हुई तब संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार के साथ उनकी एक तस्वीर सामने आई जो उन्हें सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दे रहे थे। हालांकि उन्होंने पुलिस द्वारा छात्रों से मारपीट पर रोष जताकर कुछ हद तक अपनी इस छवि से निकल की कोशिश की। मगर संघ समर्थित छवि से निकलने के लिए अख्तर के सामने कई मुश्किलें हैं। छात्र उनपर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने 15 दिसंबर के बाद छात्रों और यूनिवर्सिटी के लिए जो किया वो प्रर्याप्त नहीं था। इसके अलावा वो जो कर रही है वो सिर्फ छात्रों का दबाव था।
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन मार्च में हिस्सा ले रहे और एक बंदूकधारी की गोली का निशाना बने जामिया के छात्र शादाब फारूख कहते हैं, ‘जो हुआ उसके लिए जामिया प्रशासान और वीसी को भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। अगर उन्होंने पहले की घटनाओं पर पुलिस बर्बरता के खिलाफ कार्रवाई की होती तो ऐसा नहीं होता।’
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के संभ्रात परिवार में पैदा हुईं 67 वर्षीय नजमा अख्तर के भाई जावेद उस्मानी पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। उन्हें समाजवादी पार्टी का काफी करीबी माना जाता है और वर्तमान में राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त हैं। उनके दिवंगत पति अख्तर मजीद भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे।