भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान -3 स्पेसक्राफ्ट के विक्रम लैंडर को चंद्रमा की सतह पर ‘जंप’ करवाया। यह चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक ‘कूदा ‘ और सुरक्षित रूप से उतर गया। यह एक ऐसा कार्य था, जिसके बारे में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पहले कभी नहीं बताया था। इसरो ने एक बयान में कहा, “विक्रम लैंडर ने अपने मिशन के उद्देश्यों को पार कर लिया। यह सफलतापूर्वक ‘कूदने’ के प्रयोग से गुजरा। कमांड पर इसने इंजन चालू किया। उम्मीद के मुताबिक खुद को लगभग 40 सेमी ऊपर उठाया और 30-40 सेमी की दूरी पर सुरक्षित रूप से उतर गया।”

विक्रम नाम चंद्रयान -2 के लैंडर मॉड्यूल को दिया गया था

24 अगस्त को चंद्रमा पर लैंडिंग होने के बाद से इसरो सोशल मीडिया पर लैंडर मॉड्यूल को ‘विक्रम’ नाम से बुला रहा है। पहले इसे केवल ‘लैंडर मॉड्यूल’ या एलएम के रूप में बताया जाता था। विक्रम नाम चंद्रयान -2 के लैंडर मॉड्यूल को दिया गया था। वह 2019 में चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने में विफल रहा। उस अंतरिक्ष यान पर रोवर कंपोनेंट को ‘प्रज्ञान’ कहा गया था। इसरो ने चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर का नाम नहीं बताया था। इसरो वेबसाइट पर सभी आधिकारिक दस्तावेजों में इन्हें लैंडर मॉड्यूल (LM) और रोवर के रूप में ही बताया गया है।

इसरो ने कभी भी लैंडर के कूदने वाले प्रयोग के बारे में बात नहीं की थी

इसरो ने कभी भी लैंडर के कूदने वाले प्रयोग के बारे में बात नहीं की थी। इसका मतलब यह है कि लैंडर कुछ सेकंड के लिए चंद्र सतह को छोड़ने और पास के स्थान पर जाने में सक्षम था। ऐसी प्रक्रिया उन मिशनों में अहम है, जिनमें लैंडर को अपना कार्य पूरा करने के बाद पृथ्वी पर वापस लौटना होता है। एक नमूना वापसी मिशन, जिसमें अंतरिक्ष यान चंद्रमा से नमूने वापस लाता है, या एक मानव लैंडिंग मिशन के लिए अंतरिक्ष यान को चंद्र सतह से उतारने की आवश्यकता होगी।

बेशक उन मामलों में अंतरिक्ष यान को दिया जाने वाला जोर बहुत अधिक होगा। लेकिन एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के रूप में कूदने का प्रयोग आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसरो ने कहा, “यह ‘किक-स्टार्ट’ भविष्य के नमूना वापसी और मानव मिशनों को उत्साहित करेगा!”

हालांकि अंतरिक्ष एजेंसी ने अभी तक चंद्रमा पर अनुवर्ती मिशनों की घोषणा नहीं की है, वैज्ञानिकों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि नमूना वापसी मिशन अगला तार्किक कदम था। दरअसल, अगर चंद्रयान-2 सफल होता तो चंद्रयान-3 एक सैंपल रिटर्न मिशन होता। चीनी चांग’ई कार्यक्रम भी इसी तर्ज पर आगे बढ़ा। चीन ने 2007 में एक ऑर्बिटर भेजा और उसके बाद एक लैंडर और नमूना वापसी मिशन के साथ आगे बढ़ा, आखिरी मिशन 2020 में हुआ।