Uttarakhand Govt: उत्तराखंड के बागेश्वर के कर्मी गांव में दो बड़ी सोपस्टोन खदानों को मंजूरी मिलने से यहां के निवासियों में चिंता पैदा हो गई है। 4.5 और 15 हेक्टेयर में फैली ये खदानें हिमालय पर्वतमाला से 15 किलोमीटर के भीतर संचालित होने वाली हैं, जिससे अस्थिरता और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचने की आशंका है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय निवासी भागुली देवी कहती हैं कि हम यहां पीढ़ियों से रह रहे हैं, लेकिन इस खनन परियोजना से हमारे क्षेत्र के नष्ट होने का खतरा है। जंगल, जो पानी, चारा और आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं, खनन गतिविधि से तबाह हो जाएंगे। हमारे खेत मलबे में दब जाएंगे और हमारा एकमात्र जंगल खत्म हो जाएगा। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो हमारा गांव नहीं बचेगा।

हिमालय पर्वतमाला से खदानों की निकटता पर प्रकाश डालते हुए एक अन्य ग्रामीण गोविंद दानू ने कहते हैं कि खनन से निकलने वाली धूल और मलबा न केवल हमारे गांव को नष्ट कर देगा, बल्कि ग्लेशियरों और नाजुक हिमालयी पर्यावरण को भी प्रभावित करेगा। बता दें, यहां के निवासियों की आशंकाएं कुछ दशक पहले हुई घटनाओं से पैदा हुई हैं।

बुजुर्ग ग्रामीण दान सिंह कर्मियाल ने 41 साल पहले हुए विनाशकारी भूस्खलन को याद किया जिसमें आठ घर नष्ट हो गए थे और 36 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें मवेशी भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि कई शव कभी नहीं मिले। इन खदानों को मंजूरी देना आपदा को फिर से आमंत्रित करने जैसा है।

ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि परियोजना के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) पर फर्जी हस्ताक्षरों का उपयोग करके खनन की मंजूरी दी गई थी।

जिला खनन अधिकारी जिज्ञासा बिष्ट ने जिले में 160 खदानों की मंजूरी की पुष्टि की, जिनमें कर्मी की खदानें भी शामिल हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि एनओसी निवासियों द्वारा जारी की गई थी। हालांकि, यह एक ऐसा दावा जिसका ग्रामीणों ने जोरदार खंडन किया है।

एक अन्य निवासी नरेंद्र दानू ने कहा कि हमने इसके लिए कभी सहमति नहीं दी। इसकी जांच होनी चाहिए, और खनन की मंजूरी तुरंत रद्द की जानी चाहिए। हम अपनी सहमति क्यों देंगे? हमारा जीवन और हमारा गांव अल्पकालिक लाभ के लिए जोखिम में डालने के लिए बहुत कीमती है।

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बता दें, पिछले साल सितंबर में बागेश्वर में 160 खदानें चालू हैं, जिनमें 30 नई सोपस्टोन खदानें भी शामिल हैं जिन्हें पिछले साल ही मंजूरी दी गई थी। स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि इनमें से कई साइटें खनन नियमों का उल्लंघन करती हैं, जैसे कि खनन विभाग या स्थानीय प्रशासन से औपचारिक प्राधिकरण के बिना प्रति साइट छह उत्खनन मशीनों सहित भारी मशीनरी का उपयोग।

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पिछले महीने इस मुद्दे का संज्ञान लिया था और मामले पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए इसे “बेहद गंभीर” बताया था। इसने प्रभावित ग्रामीणों की शिकायतों का आकलन करने के लिए दो न्यायालय आयुक्तों को भी नियुक्त किया था और उन्हें एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। बागेश्वर, जिसे अत्यधिक आपदा वाला क्षेत्र माना जाता है। खदानों के पास के गांवों में भूमि धंस रही है।

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