पिछले महीने 2 सितंबर को एक बड़ी दुर्घटना में इंडियन कोस्ट गार्ड का एक हेलीकॉप्टर ALH MK-III समुद्र में डूब गया था। वो हेलीकॉप्टर एक मिशन पर निकला था, उसे एक गंभीर रूप से जख्मी क्रू मेंबर को बचाना था, उसका रेस्क्यू करना था। लेकिन तब किसी ने नहीं सोचा था कि रेस्क्यू करने गया हेलीकॉप्टर खुद दुर्घटना का शिकार हो जाएगा। असल में दो पायलट. दो एयर क्रू डाइवर्स के साथ रेस्क्यू टीम उस जख्मी शख्स के रेस्क्यू के लिए निकल पड़ी थी। लेकिन किसी कारण से वो हेलीकॉप्टर में समुद्र में डूब गया।

इस बात की जानकारी जैसे ही इंडियन कोस्ट गार्ड को मिली, एक बड़े स्तर पर सर्च ऑपरेशन चलाया गया। काफी मशक्कत के बाद एक क्रू का रेस्क्यू हो पाया और बाकी मृतकों के शव मिल गए। लेकिन एक पायलट को खोजना आसीजी के लिए काफी मुश्किल रहा, इसमें काफी मेहनत और समय गया। बताया जा रहा है कि एक शव तो महीनेभर बाद रेस्क्यू हो पाया। यहां समझने वाली बात यह है कि नेवी और इंडियन कोस्ट गार्ड ने एक बार भी उम्मीद नहीं छोड़ी, उनकी तरफ से रेस्क्यू को लगातार जारी रखा गया और उसी वजह से आखिरी पायलट का शव भी उन्हें समुद्र में मिल गया।

असल में कमांडडेंट विपिन बाबू, करण सिंह और प्रधान नाविक के शव रेस्क्यू टीम को मिल गए थे। सितंबर तीन को ही उनके शव को सुरक्षित लाया गया। लेकिन जब जानकारी मिली कि कमांडडेंट राकेश कुमार राणा का अभी तक कोई पता नहीं चला, टीम ने अपने रेस्क्यू को और तेज किया, उसका दायरा भी बढ़ा दिया। 70 बार तो हवाई मार्ग के जरिए उस पायलट को खोजने की कोशिश हुई, इसके ऊपर नेवी को भी मदद के लिए बुलाया गया। अब उस मेहनत की वजह से 10 अक्टूबर को उस आखिरी पायलट का शव बरामद हो गया। अब तय प्रोटोकॉल के तहत सभी का अंतिम संस्कार किया जाएगा।

वैसे यह कोई पहली बार नहीं है जब इंडियन कोस्ट गार्ड या फिर नेवी का ऐसा शौर्य देखने को मिला हो। खराब मौसम में फंसे पर्यटकों को बचाना हो, कहीं बाढ़ आने पर रेस्क्यू के लिए जाना हो, आईसीजी और उनके जांबाज हमेशा तैयार रहते हैं। यहां भी क्योंकि हर कीमत पर पायलट को खोजना था, ना दिन देखा गया ना रात, सिर्फ एक उम्मीद के साथ रेस्क्यू को जारी रखा गया।