मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान देश में छह नए आईआईएम को मिलने वाले फंड पर रोक लग सकती है। सरकार की एक समिति ने इन छह नए आईआईएम के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर फंड पर रोक लगाने की सिफारिश की है।

समिति की इस सिफारिश के बाद वरिष्ठ शिक्षाविदों का कहना है कि फंड पर रोक लगने से इन बिजनेस स्कूलों में मौजूदा सुविधाओं का लाभ उठाना भी मुश्किल हो जाएगा। टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिवाइज्ड कॉस्ट एस्टिमेट कमेटी ने हाल ही में अपनी सिफारिश में कहा कि झारखंड के रांची, हरियाणा के रोहतक, छत्तीसगढ़ के रायपुर, उत्तराखंड के काशीपुर, राजस्थान के उदयपुर और केरल के त्रिची में आईआईएम के फंड रोकने की सिफारिश की है।

समिति का कहना है कि इन संस्थानों ने इनको आवंटित की गई राशि से अधिक खर्च कर दिया है। ऐसे में इन्हें अतिरिक्त फंड को मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। समिति की इस सिफारिश पर मंत्रालय ने अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। इस संबंध में आईआईएम के दो पूर्व निदेशकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि इन बिजनेस स्कूल में जिस लागत बढ़ने की बात कही जा रही है उसके पीछे कारण है कि जो अनुमान लगाया गया था वह 2008 के आधार पर था।

उन्होंने कहा कि यदि अभी उन्हें फंड देने पर रोक लग गई तो ये स्कूल साल 2020-21 तक प्रति वर्ष एमबीए में 560 छात्रों के एडमिशन के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएंगे। इन दोनों ने विशेष रूप से कहा कि बिजनेस स्कूलों में इमारतों और क्लासरूम इंफ्रास्ट्रक्चर का काम लगभग पूरा हो गया है। सिर्फ हॉस्टल की बिल्डिंगों का काम चल रहा है।

इनका कहना है कि यदि इस समय फंड रोक दिया गया तो इन बिजनेस स्कूलों में हॉस्टल बिल्डिगों का निर्माण कार्य रूक जाएगा। साथ ही ये अपने यहां छात्रों की संख्या बढ़ाने और एकेडमिक सुविधाओं का उपयोग करने में असमर्थ हो जाएंगे। मालूम हो कि इन आईआईएम को साल 2009-10 और 2010-2011 में शुरू किया गया था।

कैबिनेट ने प्रत्येक आईआईएम को अपने कैंपस बनाने के लिए 333 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। मंत्रालय की तरफ से पांच आईआईएम को पूरी राशि आवंटित की जा चुकी है। जबकि आईआईएम रांची को अभी 100 करोड़ रुपये से कम की राशि दी गई है। इसका कारण उसका पिछले साल ही जमीन हासिल करना है।