नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी की राय में ‘पकौड़ा’ बेचना कोई बुरी बात नहीं है। उन्होंने ‘टाम्स ऑउ इंडिया’ के साथ बातचीत में इस संबंध में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि पकौड़ा बेचना बुरी बात नहीं है लेकिन इस धंधे में काफी सारे लोग हैं, जिनकी वजह से उन्हें काफी कम कीमत में इसे बेचना पड़ता है। दरअसल, जब बनर्जी से पूछा गया कि क्या भारत में श्रम गतिविधि में जाति एक बाहरी बाधा की तरह है? इस पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सभी लोग हर तरह के काम करना चाहते हैं। एनएसएसओ की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि 32 की उम्र सीमा तक बेरोजगारी दर काफी कम है। 30 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते भारतीय नागरिक कुछ न कुछ करना शुरू कर देते हैं।

इसके आगे जब अभिजीत बनर्जी से पूछा गया कि रोजगार मिले, भले ही वह पकौड़ा बेचने वाला ही क्यों न हो? इस पर बनर्जी ने अपनी बात रखी। टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बातचीत में अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो ने भारत की आर्थिक नीतियों के संदर्भ कई मुद्दों पर अपनी राय रखी है।

बनर्जी से जब पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है कि भारतीय सरकार उन्हें अब गंभीरता से लेगी? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उनका काम सभी के साथ है। राज्य सरकारों के साथ काम ज्यादा है। चाहें, वह बीजेपी शासित गुजरात राज्य हो या तृणमूल शासित पश्चिम बंगाल। जहां बेहतर काम होता है, वहां करते हैं। उन्होंने कहा कि वे कई राज्यों की सरकारों के साथ जुड़े हैं और साथ मिलकर काम भी करते हैं। गौरतलब है कि अभिजीत बनर्जी दुनिया भर के उन 108 अर्थशास्त्रियों में शामिल थे, जिन्होंने मोदी सरकार पर डेटा के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए अपील जारी की थी। हालांकि, अपने जवाब में बहुचर्चित ‘पकौड़ा रोजगार’ पर उन्होंने कोई कटाक्ष नहीं किया।

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले एक साक्षात्कार में पीएम मोदी ने रोजगार के संबंध में एक सवाल के जवाब में बताया था कि उनकी सरकार ने कई सारे युवाओं को लोन दिया है, जिससे वे पकौड़ा बेचने का रोजगार कर रहे हैं। उनके इस बयान के बाद लोकसभा चुनाव में इस पर काफी हो-हल्ला मचा था। विपक्षी दलों ने इस बयान के सहारे मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी। वहीं, सोशल मीडिया पर भी उनके इस बयान को काफी ट्रोल किया गया।