Jagdeep Dhankhar News: जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया है। उनका कार्यकाल 2027 तक था लेकिन उनका ये कार्यकाल विवादों से घिरा रहा क्योंकि उन्होंने न केवल विपक्ष, बल्कि न्यायपालिका का भी कई मौकों पर विरोध जताया था। इससे पहले जब वे पश्चिम बंगाल में बतौर राज्यपाल थे तब भी उनका सीएम ममता बनर्जी की टीएमसी की सरकार के साथ टकराव हुआ था। उनके इस्तीफे को लेकर कई तरह के सियासी सवाल भी खड़े हो रहे हैं, जिसकी परतें आने वाले दिनों में खुलती नजर आ सकती हैं ऋ।

साल 2022 में राज्यसभा के सभापति के रूप में उनका कार्यकाल शीतकालीन सत्र के दौरान एक विवादास्पद मोड़ पर शुरू हुआ, जब उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के 2015 के फैसले को संसदीय संप्रभुता के साथ “गंभीर समझौता” और “जनता के जनादेश” की अवहेलना का “स्पष्ट उदाहरण” बताया था।

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सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा था?

जगदीप धनखड़ ने उस दौरान कहा था कि संसद जनता के आदेश की संरक्षक होने के नाते इस मुद्दे का समाधान करने के लिए बाध्य है और उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वह ऐसा करेगी। 7 दिसंबर को सदन में की गई यह टिप्पणी, एक सप्ताह पहले उनके द्वारा कही गई बातों की पुनरावृत्ति थी। धनखड़ ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि सभी संवैधानिक संस्थाएं इन मंचों से आने वाले प्रतिकूल रूप से चुनौतीपूर्ण रुख/विनिमय या सलाह के सार्वजनिक प्रदर्शन पर विचार करें और उसे शांत करें।

जगदीप धनखड़ की टिप्पणी ऐसे समय में आई थी कि जब विपक्ष सदन में संवैधानिक निकायों के कामकाज में कथित सरकारी हस्तक्षेप, जिसमें न्यायपालिका के साथ टकराव भी शामिल है, पर चर्चा की मांग कर रहा था। एक महीने पहले, तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली “अपारदर्शी”, “जवाबदेह नहीं” और संविधान के प्रति “विपरीत” है। उनकी इस टिप्पणी पर सर्वोच्च न्यायालय ने नाराजगी जताई थी।

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संविधान की मूल प्रस्तावना की टिप्पणियां

एक महीने बाद 11 जनवरी 2023 को उन्होंने शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत पर बहस को फिर से हवा दी थी। और केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 1973 के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने कहा था कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन उसके मूल ढांचे में नहीं। जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में धनखड़ ने कहा कि क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं? इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन होगा।

जगदीप धनखड़ ने कहा था कि एक लोकतांत्रिक समाज में किसी भी बुनियादी ढांचे का आधार जनता की सर्वोच्चता, जनता की संप्रभुता और संसद की संप्रभुता होती है। कार्यपालिका संसद की संप्रभुता पर निर्भर करती है। विधायिका और संसद तय करते हैं कि मुख्यमंत्री कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा। अंतिम शक्ति विधायिका के पास होती है। विधायिका तय करती है कि अन्य संस्थाओं में कौन होगा। ऐसी स्थिति में सभी संवैधानिक संस्थाओं, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपनी सीमाओं के भीतर रहना आवश्यक है।

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केशवानंद भारती केस का किया था जिक्र

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि 1973 में केशवानंद भारती मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने बुनियादी ढांचे का विचार देते हुए कहा था कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन उसके बुनियादी ढांचे में नहीं। न्यायपालिका के प्रति पूरे सम्मान के साथ, मैं इससे सहमत नहीं हूं। इस मार्च में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित आवास पर नोटों की गड्डियां मिलने पर उठे विवाद के बीच धनखड़ ने एनजेएसी बहस को फिर से छेड़ दिया।

जगदीप धनखड़ ने कहा है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक नियुक्तियों की व्यवस्था को रद्द नहीं किया होता, तो चीजें अलग होतीं। 25 मार्च को उनकी यह टिप्पणी उस दिन आई जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा के आचरण की जाँच शुरू की और उनके आवास का दौरा किया। एनजेएसी अधिनियम में प्रस्ताव था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में छह सदस्यीय एक समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और दो “प्रतिष्ठित” व्यक्ति शामिल होंगे।

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न्यायपालिका की राष्ट्रपति को लेकर टिप्पणी ने उठाए थे सवाल

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि ऐसी वैकल्पिक प्रक्रिया को स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं उठता, जो उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति के मामले में न्यायपालिका की प्रधानता सुनिश्चित न करे। इसके अलावा 22 अप्रैल को, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को एक विधेयक पर अपनी सहमति देने के लिए तीन महीने की समय सीमा निर्धारित करने के तुरंत बाद धनखड़ ने न्यायपालिका पर सवाल उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में धनखड़ ने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी प्राधिकारी की कल्पना नहीं की गई है… निर्वाचित प्रतिनिधि, वे ही संविधान की विषयवस्तु के अंतिम स्वामी हैं।

जगदीप धनखड़ ने यह भी कहा कि भारत में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती, जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश दे। उन्होंने उसी दिन उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि इसलिए हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे, और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।

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