ग्लेशियर के टूटने पर अक्सर तबाही के मंजर ही दिखाई देते हैं। ठीक उसी तरह से जैसा फिलहाल गढ़वाल क्षेत्र में दिख रहा है। हालांकि, इनके टूटने की वजह ज्यादातर प्राकृतिक ही होती है, लेकिन कुछ मामलों में देखा गया है कि ह्यूमन एक्टिविटी भी इसके लिए जिम्मेदार होती है। जब skiing और snowboarding नियमों को अनदेखा करके की जाए तो भी ग्लेशियर टूट जाते हैं।

ग्लेशियर का निर्माण सालों तक भारी मात्रा में बर्फ जमा होने और उसके एक जगह एकत्र होने से होता है। यह यह एक प्राकृतिक घटना है। प्राकृतिक तरीके से ग्लेशियर तब टूटते हैं जब किसी भू-वैज्ञानिक हलचल जैसे गुरुत्वाकर्षण, प्लेटों के नजदीक आने या दूर जाने की वजह से पृथ्वी के नीचे कोई हलचल होती है। कई बार ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी ग्लेशियर के बर्फ पिघल कर बड़े-बड़े बर्फ के टुकड़ों के रूप में टूटने लगते हैं। इसे ग्लेशियर फटना या टूटना कहा जाता है।

99% ग्लेशियर आइस शीट के रूप में होते हैं। इन्हें महाद्वीपीय ग्लेशियर भी कहा जाता है। इस तरह के ग्लेशियर बहुत ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मिलते हैं। हिमालयी क्षेत्रों में भी ऐसे ही ग्लेशियर पाए जाते हैं। ग्लेशियर टूटता है तो यह दो तरह से तबाही मचाता है। पहले तरीके को
loose snow avalanche कहते हैं। इसमें बर्फ ऊपर से नीचे की तरफ गिरते समय फैल जाती है। slab avalanche वह प्राकृतिक कहर है, जिसमें बर्फ की चट्टानें नीचे की तरफ गिरने लगती हैं।

नेशनल avalanche सेंटर के डायरेक्टर कर्ल बिर्कलैंड का कहना है कि बर्फ की चट्टानें ही अक्सर ज्यादा तबाही का कारण बनती हैं। जब ये चट्टान पहाड़ की चोटी से नीचे गिरती है तो अक्सर शीशे की तरह से टूटकर बिखर जाती है। बर्कलैंड कहते हैं कि कई बार तेज हवा भी इनके टूटने की वजह होती है। हवा की तेज गति से ग्लेशियर बिखरने लग जाते हैं। इस तरह की घटना को बर्फीला तूफान कहा जाता है। इनकी चपेट में जो भी इलाका आता है वहां इस तरह के तूफान के बाद तबाही के मंजर ही बाकी रह जाते हैं।

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senior meteorlogist जिम एंड्रयू के मुताबिक, ग्लेशियर का टूटना दरअसल वह घटना है जिसमें विशाल आकार की बर्फ की चट्टानें अपने भार के कारण पर्वतीय ढलानों से नीचे की ओर गिरती हैं। यह चट्टानें सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे बर्फीले इलाकों में होती है, जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के पिघलने की दर से अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप प्रतिवर्ष बर्फ की एक बड़ी मात्रा जमा होती रहती है। साल दर साल बर्फ के जमा होने से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन चट्टानों के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही चट्टानें अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है। इसे ही ग्लेशियर टूटने की घटना का नाम दिया जाता है।

इन चट्टानों में बर्फ की अलग-अलग परतें मिलती हैं। दबाव के कारण नीचे की परत अपने ऊपर वाली परत से अपेक्षाकृत अधिक सघन होती है। इस प्रकार बर्फ अधिकाधिक घनी होती जाती है। इनसे ही ठोस चट्टानों की रचना होती है। भूकंप, तेज हवा या फिर किसी अन्य प्राकृतिक प्रतिक्रिया की वजह से बर्फ में दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारें तब उत्पन्न होती हैं, जब चट्टान किसी पहाड़ी या ढलान वाले मार्ग पर होकर आगे बढ़ती है। बिर्कलैंड कहते हैं कि हिमस्खलन के भी दो प्रकार होते हैं। wet avalanche में पहाड़ की चोटियों ले बर्फ के साथ बहुत सारा पानी भी नीचे गिरता है। जबकि dry avalanche में अक्सर तेज हवा की वजह से बर्फ के गिरने की घटना होती है। इसकी रफ्तार अक्सर पहले वाले से ज्यादा होती है।