विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून बना रहेगा क्योंकि गृह मंत्रालय ने इस अधिनियम को समाप्त करने की एक आधिकारिक समिति की सिफारिश को खारिज कर दिया और आतंकवाद या उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सेना के कार्य करने के लिए इसे जरूरी बताया।
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि बीपी जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशों को खारिज करने के लिए एक अनुशंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को भेजी गई। अधिनियम के खिलाफ सारी आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा कि अधिनियम की आतंकवाद या उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सेना के कार्य करने के लिए आवश्यकता है। कई मानवाधिकार संगठन इस अधिनियम को बेहद कठोर बता चुके हैं।
न्यायमूर्ति बीपी जीवन रेड्डी समिति ने इसे ‘दमन का प्रतीक’ बताते हुए साल 2005 में इस कानून को निरस्त करने की सिफारिश की थी। समिति का गठन 2004 में असम राइफल्स की हिरासत में मणिपुर में थांगजम मनोरमा नाम की एक महिला की हत्या के बाद हुए जबर्दस्त आंदोलन के मद्देनजर किया गया था। उस दौरान इरोम शर्मिला ने अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने 6 जून 2005 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। 147 पन्नों की रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी, ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून, 1958 को निरस्त करना चाहिए।’ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ‘चाहे जिस भी कारण से हो, लेकिन यह अधिनियम दमन का प्रतीक बन गया है।’
समिति ने कहा था, ‘यह बेहद वांछनीय और उपयुक्त परामर्श देने योग्य है कि कानून को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए उस क्षेत्र (पूर्वोत्तर) की जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग चाहता है कि सेना वहां बनी रहे (हालांकि कानून हटा लिया जाना चाहिए)।’ पूर्वोत्तर के विभिन्न संगठनों ने विवादास्पद कानून को ‘बेहद कठोर’ बताया है। मनोरमा की हत्या के बाद से शर्मिला अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं और उनका यह अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक कि इस कानून को समाप्त नहीं कर दिया जाता।