हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट में दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया गया। मुस्लिम लड़कियों की तरफ से पेश वकील का कहना था कि वहां की कोर्ट ने लड़कियों को नथनी पहनने की अनुमति दी थी। वकील ने कोर्ट के फैसले को सुनवाई के दौरान पढ़कर सुनाया जिसमें कहा गया था कि स्कूल के दौरान कुछ घंटों के लिए नथनी पहनने की अनुमति न देने से संदेश जाएगा कि सुनाली (लड़की), उसके धर्म और कल्चर का हम सम्मान नहीं करते हैं।

सीनियर एडवोकेट देवत्त कामत ने मुस्लिम लड़कियों की तरफ से दलील देते हुए कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम के तहत एक जरूरी धार्मिक काम है। कुछ घंटों के लिए इस पर रोक लगने से धार्मिक मान्यता को ठेस पहुंचती है। चाहें वो स्कूल जाने का समय ही क्यों न हो। संविधान के आर्टिकल 19 और 25 के तहत लोगों को मूलभूत अधिकार दिए गए हैं तो मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से क्यों रोका जा रहा है।

कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा दीक्षित और जस्टिस जेएम काजी की बेंच ने मामले के सभी पक्षों को इस दौरान सुना। कामत ने कहा कि बीते दिन की सुनवाई में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि हिजाब पहनने से रोकना संविधान की उल्लंघना नहीं है। सरकार कॉलेज कमेटी पर छोड़ती है कि वो क्या फैसला लेती है। कामत ने कहा कि जब वो स्कूल और कॉलेज में पढ़ते थे तो रुद्राक्ष की माला पहनते थे। ये धार्मिक मान्यता है कि इससे सुरक्षा मिलती है। कामत का कहना था कि बहुत से जज भी ऐसा करते हैं।

कामत ने इस दौरान दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट के एक जजमेंट का उल्लेख किया। वहां की कोर्ट ने हिंदू लड़कियों को इस आधार पर नथनी पहनने की अनुमति दी कि वो उनके धार्मिक परंपरा है। हालांकि, राज्य की तरफ से कहा गया कि वहां की लड़कियों ने स्कूल के ड्रेस कोड को माना और कुछ घंटों के लिए नथनी न पहनने से क्या फर्क पड़ा।

कामत का कहना था कि सरकार का तर्क है कि कुछ घंटों के लिए हिजाब न पहनने से कौन सा आसमान टूट पड़ेगा। गौरतलब है कि अपने पहले के फैसले में हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट का कहना था कि फैसला आने तक इसे कॉलेज में न पहना जाए। कर्नाटक के एक कॉलेज में विवाद तब पैदा हुआ जब हिजाब पहने लड़कियों का विरोध करने के लिए कुछ छात्रों ने भगवा वस्त्र धारण कर लिया।