Republic Day 2019: भारत का राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस काफी गर्व और धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन, इसको सफल बनाने के लिए तैयारियां काफी पहले से ही शुरू हो जाती हैं। कार्यक्रम में सबसे अहम होता है मुख्य अतिथि और इसके चुनाव में काफी वक्त लगता है। मुख्य अतिथि को चुनने की प्रक्रिया 6 महीने पहले ही शुरू हो जाती है। दरअसल, गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि की यात्रा एक राजकीय यात्रा के समान है, लेकिन इस समारोह में शामिल होना एक बहुत बड़ा सम्मान है और हम अपने मेहमान की एक प्रोटोकॉल के तहत देखभाल करते हैं। मुख्य अतिथि को राष्ट्रपति भवन में गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। वह शाम को राष्ट्रपति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मेहमान की भूमिका में मौजूद रहते हैं। इसके अलावा वह महात्मा गांधी की समाधि स्थलि राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। उनके सम्मान में प्रधानमंत्री दोपहर के भोजन का आयोजन भी करते हैं और उन्हें उपराष्ट्रपति तथा विदेश मंत्री की तरफ से आमंत्रित किया जाता है।

इस यात्रा की अहम बात यह है कि मुख्य अतिथि राष्ट्रपति के साथ उनके घोड़े पर सवार बॉडीगार्ड के साथ राजपथ पर पहुंचते हैं और यहां वह परेड की सलामी में हिस्सा लेते हैं। असल में इस यात्रा के कई सांकेतिक मतलब होते हैं। यह दर्शाता है कि मुख्य अतिथि भी भारत की खुशी और गौरव भरे क्षण के हिस्सेदार हैं।

गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि का निर्णय बेहद ही सावधानी पूर्वक विचार-विमर्श के बाद लिया जाता है। इसकी तैयारी 6 महीने पहले ही शुरू हो जाती है। इसमें विदेश मंत्रालय की भूमिका काफी अहम होती है जिसमें संबंधित राष्ट्र के साथ भारत के रिश्ते काफी मायने रखते हैं। इसके अलावा राजनीतिक, आर्थिक और वाणिज्यिक मामलों के साथ-साथ पड़ोसी देश के साथ रिश्ते, समारिक सहयोग या फिर बीते दौर में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर एक मंच पर शामिल रहना जैसे मुद्दे शामिल होते हैं।
मुख्य अतिथि के चयन में भारत को काफी माथा-पच्ची करनी पड़ती है। क्योंकि, भारत का गुटनिरपेक्ष देशों के साथ भावनात्मक रिश्ता काफी मजबूत है। जबकि व्यापार, तकनीकी ज्ञान और वित्तीय सहयोग जैसी विकासात्मक अनिवार्यता ने दूसरे देशों के साथ घनिष्ठ संबंधों के नए मौके और अवसर खोले हैं। इन सभी बातों को ध्यान रखते हुए मुख्य अतिथि का चुनाव बेहद ही चुनौती भरा होता है।

विदेश मंत्रालय इस पर गहन विचार-विमर्श के बाद मुख्य अतिथि का नाम प्रधानमंत्री के पास भेजता है। प्रधानमंत्री से मंजूरी मिलने के बाद इस पर राष्ट्रपति भवन का अनुमोदन लिया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद संबंधित देश में भारत के राजदूत संभावित मुख्य अतिथि के कार्यक्रम और उनके गणतंत्र दिवस में शामिल होने की संभावना को पुख्ता करते हैं। इसकी वजह यह है कि मुख्य अतिथि का नाम अगर तय हो जाए तो उसे विरले ही कैंसिल किया जा सकता है।

तमाम प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद विदेश मंत्रालय का क्षेत्रीय डिविजन बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है। इसमें प्रोटोकॉल के प्रमुख (CoP) कार्यक्रम की रुप-रेखा तैयार करते हैं। सीओपी इस दौरान अपने समकक्ष अधिकारी को गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों की विस्तार से जानकारी देते हैं। कार्यक्रम के हर मिनट की जानकारी पहले ही मुहैया कराई जाती है। इस दौरान कार्यक्रम तय होने के बाद उसमें थोड़े से भी बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं रहती है।

मुख्य अतिथि के आगमन को देखते हुए हुए उनके यात्रा के तमाम पहलुओं जिनमें की सुरक्षा, साजो-सामान, चिकित्सा की जरूरतें आदि शामिल हैं, राज्य सरकारों के सहयोग से पहले ही तैयार कर ली जाती हैं। हालांकि, कई बार ऐसा होता है कि तमाम तैयारियों के बावजूद भी कुछ त्रुटियां रह जाती हैं। कई बार देखा गया है कि स्वास्थ्य कारणों से मुख्य अतिथि समय पर कार्यक्रम में नहीं पहुंच सके। या फिर कई बार तिरंगे को गार्ड ऑफ ऑनर देने के दौरान उन्हें चलने में असुविधा हुई है। हालांकि, भरसक कोशिश होती है कि कार्यक्रम तय मानक के अनुरूप ही रहे।

गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के चुनाव में दूसरे देशों की रुचि और उनकी उपलब्धता काफी अनिवार्य होती है। आम तौर पर इस बात का ख्याल रखा जाता है कि मेहमान अपनी यात्रा से संतुष्ट और खुश रहे। वह बतौर मुख्य अतिथि आराम भी महसूस करे। चूंकि, मुख्य अतिथि के साथ उनके देश की मीडिया भी यात्रा को कवर करती है। लिहाजा, इस पहलू को भी ध्यान में रखा जाता है। दो राष्ट्रों के बेहतर संबंधों और उनकी घनिष्ठता के लिए यह जरूरी है कि अतिथि के देश वाले उनकी यात्रा को सफल मानें।

आज के आधुनिक दौर में यात्रा के विजुअल कवरेज काफी अहमियत रखते हैं, लिहाजा इस दौरान इसका भी प्रोटोकॉल में बेहद खास ख्याल रखा जाता है। यह दर्शाने की कोशिश की जाती है कि हमारे अतिथि भाव कितना विराट है। हमारा आतिथ्य हमारी पंरपराओं, संस्कृति और इतिहास को दर्शाता है।

(पूर्व भारतीय विदेश सेवा अधिकारी मनबीर सिंह 1999-2002 के दौरान प्रोटोकॉल के प्रमुख थे)