पंजाब की सियासत में इस समय एक नया बखेड़ा शुरू हो गया है। गुरबाणी को लेकर पंजाब की भगवंत सरकार और अकाली दल एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। असल में पंजाब सरकार सदन में एक प्रस्ताव लाने वाली है जिससे अमृतसर के हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में होने वाली गुरबाणी के प्रसारण के लिए किसी भी तरह के टेंडर की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुफ्त में ही कोई भी इसका प्रसारण कर पाएगा।
क्या है ये गुरबाणी विवाद?
भगवंत सरकार मानती है कि गुरबाणी सुनने का अधिकार सभी का है, ऐसे में इसका मुफ्त प्रसारण जरूरी है। इसी वजह से सिख गुरद्वारा एक्ट 1925 में नई धारा जोड़ी जाएगी और सदन में प्रस्ताव भी लाया जाएगा। अब इस प्रस्ताव पर पंजाब की सियासत में जबरदस्त राजनीति शुरू हो गई है। असल में अभी तक बादल परिवार का जो पीटीसी चैनल है, उस पर गुरबाणी का सुबह-शाम प्रसारण होता है।
अकाली से क्या कनेक्शन?
पीटीसी चैनल को ये टेंडर Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee (SGPC) से मिला हुआ है। लेकिन पंजाब की मान सरकार का आरोप है कि SGPC एक राजनीतिक कठपुतलती बन गया है जो सिर्फ अपने मालिकों के इशारे पर काम कर रहा है। जोर देकर कहा गया है कि सभी चैनलों को गुरबाणी चलाने की अनुमति ना देना गलत है। सीएम मान ने तो यहां तक कह रखा है कि इस गुरबाणी के जरिए भी बादल परिवार अपना राजनीतिक फायदा कर रही है।
विपक्ष का क्या आरोप?
वहीं दूसरी तरफ पीटीसी नेटवर्क का कहना है कि गुरबाणी के प्रसारण के लिए उनकी तरफ से हर साल SGPC को 2 करोड़ रुपये दिए जाते हैं। वहीं SGPC के जो दूसरे कार्यक्रम होते हैं, उसका प्रसारण भी पीटीसी पर किया जाता है। लेकिन अब जिस प्रस्ताव को लाने की बात हो रही है, इसके बाद बादल परिवार के चैनल की मोनोपोली खत्म हो जाएगी। वैसे भी जुलाई में पीटीसी और SGPC का कॉन्ट्रैक्ट समाप्त हो रहा है।
अभी के लिए अकाली इस प्रस्ताव को लेकर अपने चैनल का जिक्र तो नहीं कर रही, लेकिन कानून का हवाला देकर विरोध जरूर जता रही है। अकाली अध्यक्ष सुखबीर बादल कहते हैं कि सिख संगत से गुरबाणी प्रचार का अधिकार छीनना एक खतरनाक कदम है और गुरुद्वाओं को सरकारी कंट्रोल में लाने की कोशिश है। ये सिर्फ खालसा पंथ के गुरुद्वारों पर हमला नहीं है, बल्कि सिख समाज पर भी हमला है।
सिद्धू का साथ, फिर होगा खेल?
एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि जिस कानून में संशोधन की बात की जा रही है, वो केंद्र सरकार का बनाया हुआ है, ऐसे में राज्य सरकार कैसे संशोधन कर सकती है। वैसे बड़ी बात ये है कि इस विवाद में मान सरकार को कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धा का साथ मिल गया है जिनका कहना है कि ये काफी पुरानी मांग थी जिसे अब माना जा रहा है। इस मामले में उनका स्टैंड कांग्रेस से ही अलग चला गया है जो इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार को घेर रही है।