छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के लोगों ने दशरथ मांझी के नक्शे कदम पर चलकर उन्हीं की तरह पहाड़ में से रास्ता निकालकर दिखा दिया। आदिवासियों के इस जिले में गोंड आदिवासियों के पांच गांव पड़ते हैं। जिनके नाम मुरुमसली, नाथुकोना, रायपुरा, हाराकोठी और साईपानपारा हैं। पहाड़ की वजह से ये पांचों गांव राज्य का हिस्सा होकर भी कट से गए थे।
यहां रहने वाले लोगों को दूसरी जगह जाने के लिए 20 किलोमीटर घूमकर जाना पड़ता था। जिससे किसी आपातकालीन स्थिति में भी हॉस्पिटल पहुंचने में दो घंटे लग जाते थे। इस परेशानी से सभी वाकिफ थे। 2015 की गर्मियों में नाथुकोना और साईपानपारा के लोगों ने पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने की बात सोची। वे इस विचार को लेकर जिले के एक अधिकारी से मिले जिनका नाम जीवन चंद्रा था।
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान जीवन चंद्रा ने कहा, ‘हमारी तरफ से उन लोगों को बता दिया गया था कि पहाड़ काटने की मशीन के आने की मंजूरी मिलने में बहुत वक्त निकल जाएगा। इसपर वे लोग बोले की वे खुद अपने हाथों से पहाड़ काटकर रास्ता बना लेंगे। मैं उनकी इस बात को गंभीरता से नहीं ले रहा था पर, वे अपनी बात पर अड़े रहे। इसके बाद मैंने यह बात जिले के कलैक्टर को बता दी।’

अक्टूबर तक भी कुछ ना होने पर गांव के लोगों ने खुद जाकर जिले के कलैक्टर भीम सिंह से बात की। इसके बाद भीम सिंह ने योजना बनाई की अगर गांव के लोग खुद पहाड़ काटने को तैयार ही हैं तो क्यों ना ‘मनरेगा’ के तहत उन्हें ये काम दिलवा दिया जाए।
फिर क्या था, बात ऊपर तक पहुंची और जिले के लोगों को ही रास्ता बनाने का काम सौंप दिया गया। फिर रोजाना 167 रुपए की दिहाड़ी पर लगभग 100 लोगों ने काम किया और रास्ता बना लिया। 270 मीटर लंबे और 6.4 मीटर चौड़े इस रास्ते के लिए 9.90 लाख रुपए का बजट तय किया गया था। जिसे वक्त और पैसे की तय सीमा में पूरा कर लिया गया।
ये लोग सुबह 6 से 11 बजे तक यह काम करते थे और बाकी वक्त अपने खेत का काम निपटाते थे। ग्रामीण मंत्रालय की टीम इस रास्ते के काम को देखकर इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने यह नीति पूरे देश में लागू करने का विचार बना लिया।

