सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन में फंसे सेना के आठ जवानों में से चार शहीद हो गए हैं। सोमवार को दोपहर साढ़े तीन बजे बर्फानी तूफान में गश्त लगा रहे सेना के ये जवान बर्फ में दब गए थे। इन सभी को बचाव दल ने देर रात निकाला। चार जवान मर चुके थे। बाकी को सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सेना के इस गश्ती दल के साथ चल रहे दो कुली भी हिमस्खलन में फंसकर मर गए। अस्पताल में भर्ती सेना के दो जवानों की हालत गंभीर बताई जा रही है।
दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र कहे जाने वाले काराकोरम क्षेत्र में स्थित सियाचिन के उत्तरी हिस्से में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर आठ जवानों का यह गश्ती दल सेना की पोस्ट पर बीमार पड़े एक जवान को निकालने के लिए भेजा गया था। तभी हिमस्खलन की चपेट में आकर सभी जवान बर्फ में दब गए। सेना ने इन सभी को निकालने के लिए युद्धस्तर पर अभियान चलाया। खराब मौसम के बीच चलाए गए अभियान में देर रात तक सभी जवानों को बर्फ में से निकाला जा सका।
गंभीर रूप से घायल स्थिति में सभी जवानों को हेलिकॉप्टर से नजदीकी सैन्य अस्पताल पहुंचाया गया। हाइथर्मिया के कारण जवानों और दो कुलियों ने दम तोड़ दिया। सियाचिन ग्लेशियर में इन दिनों माइनस 30 डिग्री तापमान है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है। यहां दुश्मन की बजाय मौसम आधारित परिस्थितियों से सैनिकों की जान ज्यादा जाती है। ग्लेशियर पर ठंड के मौसम के दौरान हिमस्खलन की घटनाएं आम हैं। साथ ही यहां तापमान शून्य से 60 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है।
फरवरी 2016 में हुए हिमस्खलन में 10 जवानों की मौत हो गई थी।आंकड़ों के अनुसार, साल 1984 से लेकर अब तक हिमस्खलन की घटनाओं में सेना के 35 अफसरों समेत 1000 से अधिक जवान सियाचिन में शहीद हो चुके हैं। 2016 में ऐसी ही एक घटना में मद्रास रेजीमेंट के जवान हनुमनथप्पा समेत कुल 10 सैन्यकर्मी बर्फ में दबकर शहीद हो गए थे।