Dr. Manmohan Singh’s religious ideology डॉ. मनमोहन सिंह की पहचान सिर्फ एक महान अर्थशास्त्री और भारत के प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि एक ऐसे नेता के रूप में भी है, जिन्होंने हमेशा अपनी आस्था और विश्वास को निजी रखा। उनका जीवन इस बात का प्रतीक था कि विज्ञान और धर्म दोनों के बीच संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है। डॉ. सिंह ने हमेशा यह माना कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं, और यही कारण था कि उन्होंने अपनी प्रगतिशील सोच के साथ ही धार्मिक आस्था का भी आदर किया। हालांकि, उनका धार्मिक विश्वास निजी था, और वे इसे सार्वजनिक रूप से ज्यादा व्यक्त नहीं करते थे। उनका मानना था कि आस्था एक व्यक्तिगत अनुभव है, जिसे दूसरों पर थोपना नहीं चाहिए। जेपी देवधर की किताब मनमोहन सिंह: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी (Manmohan Singh: A Political Biography) में उनके विचारों और धार्मिक आस्था के बारे में विस्तार से लिखा गया है। यह किताब उनके प्रधानमंत्री बनने से लेकर उनके निजी जीवन के पहलुओं को भी उजागर करती है, जिसमें उनकी सादगी और धार्मिक विश्वास शामिल हैं।
सादगी, ईमानदारी और सेवा के सिद्धांत उनके जीवन में हर कदम पर दिखाई देते थे
मनमोहन सिंह सिख धर्म के अनुयायी थे, और उनका जीवन सिख धर्म के सिद्धांतों पर आधारित था। वे हमेशा सादगी, ईमानदारी और सेवा के सिद्धांतों से प्रेरित रहते थे। उनके जीवन में यह सिद्धांत हर कदम पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते थे। चाहे वह राजनीति हो या निजी जीवन, हर पहलू में उन्होंने इन मूल्यों को महत्वपूर्ण माना। यही कारण था कि वे अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में इन सिद्धांतों का पालन करने का पूरा प्रयास करते थे। उनका विश्वास था कि धर्म की शक्ति से ही एक व्यक्ति अपनी आत्मा को शांति और संतुलन दे सकता है।
पूर्व प्रधानमंत्री का धार्मिक जीवन और पूजा की आदतें
इसी तरह संजय बारू की किताब द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह (The Accidental Prime Minister: The Making and Unmaking of Manmohan Singh) में भी मनमोहन सिंह के धार्मिक दृष्टिकोण का उल्लेख है, जहां उनके निजी जीवन के मामलों और कार्यशैली पर प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया गया है कि मनमोहन सिंह का जीवन पूजा और ध्यान से गहरे रूप से जुड़ा हुआ था। प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता की ऊंचाइयों पर पहुंचने के बावजूद, उनका मन अपने धर्म में ही स्थिर रहता था। वे अक्सर गुरुद्वारे जाते थे और वहां प्रार्थना करते थे। उनका मानना था कि सेवा और दान करने से न सिर्फ समाज की भलाई होती है, बल्कि आत्मा को भी शांति मिलती है। प्रधानमंत्री रहते हुए भी, उन्होंने अपनी धार्मिक आस्था को कभी नहीं छिपाया। उनका यह विश्वास था कि धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना और सेवा करना किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार है, और इसे सम्मान मिलना चाहिए।
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सुभाष कश्यप की किताब मनमोहन सिंह: द लीडर एंड द मैन (Manmohan Singh: The Leader and the Man) में डॉ. मनमोहन सिंह को एक सहिष्णु नेता के रूप में बताया गया है। इसमें उनके सिख धर्म के प्रति आस्था, उनकी धार्मिक गतिविधियों और सहिष्णुता की विचारधारा के बारे में बताया गया है। मनमोहन सिंह का जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा था, जो आस्था और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना चाहते थे। प्रधानमंत्री रहते हुए, उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उनके निर्णय और कार्य भारतीय समाज की धार्मिक विविधता का सम्मान करें। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा को हमेशा अपने नेतृत्व का हिस्सा बनाया। उनका मानना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों और संस्कृतियों को समान सम्मान मिलना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उनके कार्यों और नीतियों में हर धर्म और समुदाय को समान अवसर मिले।
डॉ. मनमोहन सिंह गुरु नानक देव जी के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा रखते थे। उनका विश्वास था कि गुरु नानक की शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे आज के समाज के लिए भी प्रासंगिक हैं। गुरु नानक ने समाज में समानता, मानवता और ईमानदारी का संदेश दिया था, जिसे डॉ. सिंह अपने नेतृत्व के दौरान हमेशा ध्यान में रखते थे। उनका मानना था कि गुरु नानक का संदेश हर व्यक्ति को एक समान दृष्टिकोण से देखने और सभी को समान अधिकार देने की प्रेरणा देता है।
मनमोहन सिंह के लिए, धार्मिक विश्वास केवल पूजा अर्चना तक सीमित नहीं था, बल्कि यह उनके जीवन के हर पहलू में दिखता था। उन्होंने न केवल सिख धर्म के सिद्धांतों का पालन किया, बल्कि इन सिद्धांतों को अपने कार्यों में भी उतारा। उनके जीवन और कार्यों से यह स्पष्ट होता था कि उनका नेतृत्व धर्म, विज्ञान और मानवता के बीच संतुलन बनाए रखने का उदाहरण था।