यह बात एक अध्ययन में सामने आई। ‘द लीप-इप्सोस स्ट्रैटेजी स्टडी अब्राड आउटलुक रिपोर्ट’ मंगलवार को पेश की गई जिसमें कहा गया है कि तीन लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक की आय वाले भारतीय मध्यम वर्गीय परिवारों में से 57 फीसद का झुकाव विदेशी शिक्षा पर खर्च करने की ओर है।
यह रिपोर्ट इस बात की जानकारी देती है कि भारतीय आबादी के इस सबसे बड़े वर्ग में विदेशी शिक्षा कैसे लोकप्रिय हो रही है। लीप के सह-संस्थापक वैभव सिंह ने कहा, ‘छात्र समुदाय की बढ़ती आकांक्षाओं के कारण, भारतीय विदेशी शिक्षा बाजार के कई गुना बढ़ने की उम्मीद है और 2025 तक 20 लाख से अधिक भारतीय छात्र अपनी विदेशी शिक्षा पर 100 अरब डालर से अधिक खर्च करेंगे। यह एक बहुत बड़ा अवसर है और इस क्षेत्र में नवीन उत्पादों और सेवाओं की मांग में भारी वृद्धि देखने को मिलेगी।’
रिपोर्ट के मुताबिक, 83 फीसदी विद्यार्थियों का मानना है कि विदेश में डिग्री हासिल करने के बाद बेहतर नौकरी हासिल करने की उनकी संभावनाएं बढ़ जाएंगी। बयान में कहा गया है कि वैश्विक सम्पर्क के कारण, 42 फीसद भारतीय छात्रों के लिए उन देशों के गंतव्य खुले हुए हैं, जिनकी पहली भाषा अंग्रेजी नहीं है। इसमें कहा गया है, ‘‘यह दर्शाता है कि भारतीय छात्र अपनी पसंद का विस्तार कर रहे हैं और एक विदेशी शिक्षा गंतव्य की अपनी प्राथमिकताओं में उनका रुख लचीला हो रहा है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि अभ्यर्थी शिक्षा ऋण लेने के प्रति अधिक भरोसा दिखा रहे हैं। रिपोर्ट से पता चलता है कि 62 फीसद से अधिक भारतीय शिक्षा ऋण पसंद करते हैं, जबकि 53 फीसद छात्रवृत्ति का प्रयास करते हैं। अध्ययन में शामिल अभ्यर्थियों में 60 फीसद पुरुष थे जबकि 39 फीसद महिलाएं थीं। दो फीसद अपने लिंग का उल्लेख नहीं करना चाहते थे। दो-तिहाई अभ्यर्थी 18-24 वर्ष की आयु के थे जबकि लगभग 34 फीसद 25-30 वर्ष की आयु के थे।