नरेंद्र मोदी की सरकार ने सरकारी बैंकों में सुधार की प्रक्रिया को तेज करने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) का गठन किया था। पूर्व CAG विनोद राय को ब्यूरो का प्रमुख नियुक्त किया गया था। बीबीबी का कहना है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली से पिछले साल जुलाई में मिलने का समय मांगा गया था, ताकि सुधार की दिशा में विचार विमर्श कर कार्ययोजना तैयार की जा सके। लेकिन, नौ महीने बीत जाने के बाद भी वित्त मंत्री ने इसका संज्ञान नहीं लिया है। बैंक बोर्ड ब्यूरो के अनुसार, उसने 26 जुलाई, 2017 को इस बाबत वित्त मंत्री को पत्र लिखा था। ब्यूरो की वेबसाइट पर इसका उल्लेख किया गया है। बीबीबी का कहना है कि यह संस्था महज नियुक्ति ब्यूरो बनकर रह गया है। विनोद राय की अध्यक्षता वाले ब्यूरो ने बैंकों में सरकारी हस्तक्षेप को पूरी तरह से समाप्त करने की बात कही है। ब्यूरो का कहना है कि वह केंद्र को सरकारी बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और बोर्ड मेंबर की नियुक्ति को लेकर भी सुझाव देने वाला है। इसके अलावा अन्य मुद्दों पर बातचीत के लिए वित्त मंत्री से मिलने का समय मांगा गया था जो अभी तक नहीं मिल सका है। बीबीबी का गठन सरकारी बैंकों को ज्यादा सक्षम बनाने के उद्देश्य से किया गया था, ताकि बाजार के बदलते स्वभाव के तहत काम किया जा सके। उल्लेखनीय है कि बीबीबी का मौजूदा कार्यकाल 31 मार्च को समाप्त हो रहा है, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इसका कार्यकाल आगे बढ़ाया जाएगा या नहीं।
बता दें कि बीबीबी का गठन पीजे. नायक समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया था। इसने 1 अप्रैल, 2016 से काम करना शुरू किया था। बीबीबी ने अपने पत्र में सरकारी बैंकों में केंद्र की हिस्सेदारी को 51 फीसद से कम किए बगैर भी सुधार की प्रक्रिया को रफ्तार देने का संकेत दिया है। ब्यूरो ने लिखा, ‘सरकार के पास मेजोरिटी शेयर होने के बावजूद सरकारी बैंक निजी बैंकों की तरह सक्षम हो सकते हैं।’ पंजाब नेशनल बैंक में 13,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का घोटाला सामने आने के बाद बैंक बोर्ड ब्यूरो और विनोद राय पर सवाल उठने लगे थे। मोदी सरकार को भी कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने भी सार्वजनिक तौर पर बैंकों को विनियमित करने के लिए पर्याप्त अधिकार न होने की बात कही थी। इससे भी केंद्र सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था।