उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन ने बी सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया है। विपक्षी पार्टियां भी कोशिश कर रही हैं कि वे रेड्डी के लिए जरूरी समर्थन प्राप्त कर लें। कई पार्टियों ने आगे से आकर समर्थन देने का ऐलान भी किया है, लेकिन फिर भी नंबर गेम अभी रेड्डी के पक्ष में नहीं है। इसके ऊपर देश के गृह मंत्री अमित शाह उन पर हमलावर हैं, उन पर वामपंथी विचारधारा से प्रेरित होने के आरोप लग रहे हैं। अब इन आरोपों के बीच जनसत्ता के सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने बी सुदर्शन रेड्डी से खास बातचीत की है-
आपके लिए इस चुनाव का क्या मतलब है, क्या मुद्दे हैं?
हमारे देश का जो संविधान है, उसके सभी सिद्धांत प्रस्तावना में लिखे हुए हैं। जैसे सभी नागरिकों के कुछ दायित्व होते हैं, मेरी भी जिम्मेदारी है कि मैं संविधान की बात करूं, उसे समझू, जितना हो सके उसे लागू करूं। आम सहमति बनाने की कोशिश होनी चाहिए, काफी ज्यादा ध्रुवीकरण होने लगा है। भारत जैसे विविधता वाले देश में इस ध्रुवीकरण की वजह से अराजगता फैल सकती है। हमे इससे बचना चाहिए। अगर मुझे मौका मिलता है तो मैं जरूर इस विचार को आगे बढ़ाऊंगा।
नंबर आपके खिलाफ, फिर भी क्यों चुनाव में उतरे?
मैं आपके इस विचार से सहमत नहीं हूं क्योंकि इस चुनाव में राजनीतिक पार्टियां आकर वोट नहीं करती हैं। सांसद होते हैं जो आते हैं और अपना वोट डालते हैं। इस चुनाव में संसद के सांसद शामिल होते हैं, कोई राजनीतिक पार्टी नहीं। हमारे संविधान ने इसे सीक्रेट बैलट बताया है, इसी वजह से कोई भी पार्टी व्हिप जारी नहीं कर सकती है। इस सिद्धांत का सम्मान होना जरूरी है। ऐसे में मेरी कोशिश रहेगी कि सभी सांसद मेरी मेरिट पर मुझे समर्थन दें।
आपको लगता है, पार्टी लाइन से ऊपर उठ वोट मिलेगा?
यहां सारी बात विकल्प की है, मुझे उम्मीद है कि सभी सांसद मेरिट को आधार बनाकर ही कोई फैसला लेंगे। मेरा सिर्फ इतना काम है कि मैं सभी से अपील करूं, सभी से समर्थन मांगू।
विपक्ष वोट चोरी की बात कर रहा है, क्या विचार हैं?
मैं कोई टेक्निकल इंसान नहीं हूं, ऐसे में नहीं कह सकता कि ईवीएम टैंपर हो सकती है या नहीं। लेकिन सवाल यह जरूर है कि क्या बिना इलेक्टोरल रोल के क्या लोकतंत्र मजबूत हो सकता है, इसका जवाब ना है। किसी ने कहा था कि भारत के लोग अब वोटर पहले बन चुके हैं, नागरिक बाद में हैं। इलेक्टोरल रोल्स बनाने का काम तो संविधान बनने से पहले ही शुरू हो गया था। जब संविधान सभा बहस कर रही थी, दूसरी तरफ इस पर भी काम चल रहा था। पूरा प्रयास रहा था कि इलेक्टोरल रोल को समावेशी होना चाहिए।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफ पर क्या बोलेंगे?
मेरा इस पर टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा। मुझे लगता है कि भविष्य में वे खुद सामने से आकर जगदीप धनखड़ जी इसका कारण बता देंगे।
संविधान में 130वें संशोधन को लेकर आए बिल पर क्या बोलेंगे?
मैंने बिल देखा तो है, लेकिन इसकी संविधानिक वैधता पर सवाल है। अभी तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूं, इस पर बहस नहीं हुई है, अभी यह भी नहीं पता ज्वाइंट कमेटी क्या विचार रखेगी। समझने की जरूरत है कि यह एक संवैधानिक बिल है जहां दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है। अब क्या सरकार को जरूरी समर्थन मिल पाएगा, अभी बोलना जल्दबाजी होगा।
आपका चयन क्या वामपंथी विचारधारा के आधार पर हुआ?
मेरी विचारधारा संविधान है। मेरी विचारधारा समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, व्यक्ति की गरिमा और न्याय के प्रति निष्ठा है। इसी क्रम में। सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनीतिक न्याय। मैं यह नहीं कह रहा। प्रस्तावना में यह कहा गया है। प्रस्तावना द्वारा ही क्रम निर्धारित किया गया है। मैं सामाजिक न्याय का समर्थक हूं। अगर इसका मतलब वामपंथ है, तो मैं उसे कोई नाम नहीं दे सकता, चाहे वह वामपंथी हो, दक्षिणपंथी हो या मध्यमार्गी।